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Showing posts from February, 2019

hamko kalandar kahaa gaya

:ग़ज़ल संख्या 1 : इक बंजारा करता क्या... धूप का जंगल, नंगे पावों इक बंजारा करता क्या रेत के दरिया, रेत के झरने प्यास का मारा करता क्या बादल-बादल आग लगी थी, छाया तरसे छाया को पत्ता-पत्ता सूख चुका था पेड़ बेचारा करता क्या सब उसके आँगन में अपनी राम कहानी कहते थे बोल नहीं सकता था कुछ भी घर-चौबारा करता क्या तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे, हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या ये है तेरी और न मेरी दुनिया आनी-जानी है तेरा-मेरा, इसका-उसका, फिर बंटवारा करता क्या टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये बींच भंवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या  :ग़ज़ल संख्या 2 : जिंदा रहे तो हमको कलंदर कहा गया... ज़िन्दा रहे तो हमको क़लन्दर कहा गया सूली पे चढ़ गये तो पयम्बर कहा गया ऐसा हमारे दौर में अक्सर कहा गया पत्थर को मोम, मोम को पत्थर कहा गया ख़ुद अपनी पीठ ठोंक ली कुछ मिल गया अगर जब कुछ नहीं मिला तो मुक़द्दर कहा गया वैसे तो ये भी आम मकानों की तरह था तुम साथ हो लिये तो इसे घर कहा गया जिस रोज़ तेरी आँख ज़रा डबडबा गयी क़तरे को उसी दिन से समन्दर कहा गया जो रात छोड़ दिन में...

Basant panchmi special

बसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाओं सहित... (1) मातु कृपा इतनी कर देना... मातु कृपा इतनी कर देना अपनी वीणा के मीठे स्वर अधरों पर धर देना... गीतों की रस धार तुम्हीं हो ग़ज़लों का श्रृंगार तुम्हीं हो दोहा हो या छंद रुबाई कविता का आधार तुम्हीं हो मेरी रचनाओं में मैया जन-जन का स्वर देना... शब्द-शब्द संधान करूँ मैं सच के लिए विषपान करूँ मैं मेरा मान बढ़े कविता से पर न कभी अभिमान करूँ मैं आखर पंछी अम्बर छू लें मुझको वो पर देना... गीत जहाँ संगीत जहाँ हो काव्य-कला की रीत जहाँ हो द्वेष-दम्भ से दूर रहें सब मानवता हो प्रीत जहाँ हो जिसमे तेरा वास हो मैया मुझको वो घर देना... - डा. अंसार क़म्बरी, मशहूर शायर संरक्षक, हिर्दू फाउंडेशन (2) शब्दों की नैय्या... मन की नदिया में तैरायें हम शब्दों की नइया। हमें लोग कवि कहते हैं पर हम हैं नाव-खेवइया।। शब्दों की इन नौकाओं पर करते अर्थ सवारी। अर्थों के सँग भावों की भी रहती दुनिया न्यारी। भाव हँसायें, भाव रुलायें, करवायें ता-थइया। मन की नदिया में तैरायें हम शब्दों की नइया।। शब्दों वाली ये नौकायें करतब खूब दिखायें। ये इठलाये...

Hamari aah par bhi waah

:ग़ज़ल सं. 2 : बात हमने भी आगे बढ़ाई नहीं। और उसने भी ज़हमत उठाई नहीं।। मैं पुराने ख़तों को जलाता रहा, रात भर जब मुझे नींद आई नहीं।। कह भले दें कि हमने भुला सब दिया, बात कोई भी जाती भुलाई नहीं।। छोड़िए मैं गलत आप ही ठीक हैं, चाहिए आपसे अब सफाई नहीं।। 'ज्ञान' दिक़्क़त न हो बस किसी और को, फिर करो लाख मस्ती बुराई नहीं।। :ग़ज़ल सं. 2 : हमारी आह पर भी वाह उनकी। रही फिर भी हमें परवाह उनकी।। उन्हें आना नहीं था वो न आए, मगर तकते रहे हम राह उनकी।। उन्होंने टाल दी हर बात हंसकर, नहीं हम पा सके हैं थाह उनकी।। हुए हम इस क़दर क़ुर्बान उन पर, हमें हरदम रही है चाह उनकी।। हमें वो देखते तो हैं मगर क्यों, नज़र लगती है लापरवाह उनकी।। - ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' वरिष्ठ अनुवादक, भारत सरकार आप भी अपनी रचनाएँ हमें भेज सकते हैं... ई-मेल : hirdukavyashala555@gmail.com हिर्दू फाउंडेशन से जुड़ें: : वेबसाइट : इंस्टाग्राम : फेसबुक : अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: शिवम् शर्मा गुमनाम (संस्थापक एवं सचिव) रश्मि द्विवेदी (अध्यक्षा) संपर्क सूत्र: 7080786182, 9889697675