Hamari aah par bhi waah



:ग़ज़ल सं. 2 :
बात हमने भी आगे बढ़ाई नहीं।
और उसने भी ज़हमत उठाई नहीं।।
मैं पुराने ख़तों को जलाता रहा,
रात भर जब मुझे नींद आई नहीं।।
कह भले दें कि हमने भुला सब दिया,
बात कोई भी जाती भुलाई नहीं।।
छोड़िए मैं गलत आप ही ठीक हैं,
चाहिए आपसे अब सफाई नहीं।।
'ज्ञान' दिक़्क़त न हो बस किसी और को,
फिर करो लाख मस्ती बुराई नहीं।।
:ग़ज़ल सं. 2 :
हमारी आह पर भी वाह उनकी।
रही फिर भी हमें परवाह उनकी।।
उन्हें आना नहीं था वो न आए,
मगर तकते रहे हम राह उनकी।।
उन्होंने टाल दी हर बात हंसकर,
नहीं हम पा सके हैं थाह उनकी।।
हुए हम इस क़दर क़ुर्बान उन पर,
हमें हरदम रही है चाह उनकी।।
हमें वो देखते तो हैं मगर क्यों,
नज़र लगती है लापरवाह उनकी।।
- ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
वरिष्ठ अनुवादक, भारत सरकार
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