lakho sadme dhero gham by azm shakiri
हिंदुस्तान के मशहूर शायर
जनाब अज़्म शाकिरी साहब की एक खूबसूरत सी ग़ज़ल...शायरी-पसंद लोगों के लिए ...
लाखों सदमें ढेरों ग़म।
फिर भी नहीं हैं आंखें नम।।
फिर भी नहीं हैं आंखें नम।।
इक मुद्दत से रोए नहीं,
क्या पत्थर के हो गए हम।।
क्या पत्थर के हो गए हम।।
यूं पलकों पे हैं आँसू,
जैसे फूलों पर शबनम।।
जैसे फूलों पर शबनम।।
ख़्वाब में वो आ जाते हैं,
इतना तो रखते हैं भरम।।
इतना तो रखते हैं भरम।।
हम उस बस्ती में हैं जहाँ,
धूप ज़ियादा साये कम।।
धूप ज़ियादा साये कम।।
अब ज़ख्मों में ताब नहीं,
अब क्यों लाए हो मरहम।।
-अज़्म शाकिरी
Waah waah kamaal
ReplyDeleteवाहः
ReplyDeleteBahut hi behtarin najm.
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