Agnivesh shukla at hirdu kavyashala

आज आपको मिलवाते हैं शाहजहांपुर गौरव स्मृतिशेष अग्निवेश शुक्ल जी से...आक्रोश के कवि और एक जिंदादिल शायर अग्निवेश शुक्ल अपने दौर के साहित्यिक मंचों पर अपनी एक विशेष पहचान रखते थे। उनका फक्कड़ अंदाज़ उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग बनाता था...
उनके न रहने के बाद प्रकाशित उनके ग़ज़ल संग्रह  'रात के पिछले पहर' से एक दुनियाबी हकीकत को पेश करती उनकी एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
स्मृतिशेष अग्निवेश शुक्ल
ग़ज़ल :

ख़बर फैलेगी थोड़ी सी, ज़रा सा तज़किरा होगा।
सिवा इसके बताओ तुम, मैं मर जाऊँ तो क्या होगा।

अब इसकी मौत पर खुशियाँ मनाएं, या करें मातम,
अज़ीज़ों में मेरे ज़ेरे बहस, यह मुद् दआ होगा।

अभी से ढूँढता हूँ मैं उसे, रिश्तों के जंगल में,
वो चेहरा कौन सा होगा, जो चेहरा ग़मज़दा होगा।

मेरी ऊँचाइयों से जो, परेशाँ ही रहे हर दम,
जनाज़ा मेरा, उन बौनों के कंधों पर धरा होगा।

सबब कुछ भी हो मरने का, कहेंगे लोग बस इतना,
शराबी था, शराबी था, नशे में मर गया होगा।

मेरी बीबी भी रोयेगी, मेरे बच्चे भी रोयेंगे,
कोई ख़ुदग़र्ज़ शातिर, उनके आँसू पोछता होगा।

लबे दम अपनी हसरत है, कि ये मंज़र भी देखेंगे,
जहाँ क़दमों में होगा, और सिरहाने ख़ुदा होगा।
- अग्निवेश शुक्ल

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