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Showing posts from October, 2018

Nida fazli at hirdu kavyashala

मरहूम निदा फ़ाज़ली साहब का एक गीत और एक ग़ज़ल... गीत: तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है... जहाँ भी जाऊँ ये लगता है, तेरी महफ़िल है... ये आसमान ये बादल ये रास्ते ये हवा... हर एक चीज़ है अपनी जग...

Legend John elia at hirdu kavyashala

ग़ज़ल: एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं। सब के दिल से उतर गया हूँ मैं।। कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ, सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं।। क्या बताऊँ के मर नहीं पाता, जीते जी जब से मर गया हूँ म...

Ishrat saghir at hirdu kavyashala (interview special)

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आज मिलते हैं शाहजहाँपुर के सुप्रसिद्ध ग़ज़लगो शाइरऔर अदीब (साहित्यकार) इशरत शाहजहाँपुरी साहब से... इशरत शाहजहाँपुरी साहब सवाल: आपकी नज़र में कविता क्या है? जबाब: कविता या शाइरी एक रूहानी कैफियत का नाम है जिसको इल्हामियत से निसबत है़ । मेरी नज़र में शाइरी पाक़ीज़ा जज़्बात का मौज़ूँ इज़हार है। सवाल: आप कब से लेखन कर रहे हैं? जबाब: क़रीब दस सालों से मुसलसल इस दश्त की ख़ाक छान रहा हूँ ।२०१० में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में क़याम के दौरान मेरी ग़ज़ल को फ़र्स्ट प्राइज़ मिला और वहीं हॉल फंक्शन में मुझे पहली बार पढ़ने का मौक़ा मिला। सवाल: कविता के लिए क्या ज़रूरी है भाव या व्याकरण? जबाब: मैने कहा ये पाकीज़ा जज़्बात का इज़हार है इसमें व्याकरण या निज़ामे अरूज़ दूसरे नम्बर की चीज़ है अलबत्ता इस इज़हारे जज़्बात की कैफ़ियत को फ़न का दर्जा तब ही हासिल होगा जब इसके असूलो क़वायद पर दस्तरस पैदा हो। सवाल: आज जिसे देखो अपने आगे कवि/शायर लगाए फिरता है  आप इसे क्या कहेंगे भाषा और साहित्य के प्रति लगाव या मंचीय चमक - धमक का आकर्षण? जबाब: कवि/शाइर का खिताब कोई ऐसा ख़िताब नहीं जिस...

sarvesh asthana at hirdu kavyashala

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डा. सर्वेश अस्थाना स्माइल मैन डा. सर्वेश अस्थाना (अंतर्राष्ट्रीय हास्य व्यंग्यकार, गीतकार एवं ग़ज़लकार) ग़ज़ल: माँ कितने दर्द उठाती है माँ। फिर भी तो मुस्काती है माँ।। अपनी माँ का प्यार समेटे, खुद ही माँ हो जाती है माँ।। दो दो कुल की उजियारी है, कितने दीप जलाती है माँ।। बच्चों को सब खाना देकर, खुद की भूख मिटाती है माँ।। रूप बदल सकते सब रिश्ते , केवल माँ बन आती है माँ।। ग़ज़ल: बाप वो है एक बेचारा बाप। बच्चों से ही हारा बाप।। बच्चे लहरों का सैलाब , टूटा हुआ किनारा बाप।। उनके ही सम्मुख बेबस , जिनका रहा सहारा बाप।। औलादें अब सूरज हैं , टूटा हुआ सितारा बाप।। अब वो केवल नौकर है, होगा कभी हमारा बाप।। :डा. सर्वेश अस्थाना (9415303060) आप भी अपनी रचनाएँ हमें भेज सकते हैं... ई-मेल : hirdukavyashala 555 @gmail.com हिर्दू फाउंडेशन से जुड़ें: : वेबसाइट : इंस्टाग्राम : फेसबुक : अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: शिवम् शर्मा गुमनाम (संस्थापक एवं सचिव) रश्मि द्विवेदी (अध्यक्षा) संतोष शाह (संस्थापक सदस्य) संपर्क सूत्र: 70807...

Dilshad zakhmi at hirdu kavyashala

ग़ज़ल 1: कि ज़ालिम पे जब से शबाब आ गया है। तो चेहरे पे उसके नक़ाब आ गया है।। कोई डाकिया जब भी आया गली में, मैं समझा कि ख़त का जबाब आ गया है।। मेरी राह में जिसने काँटें बिछाए, वही आज लेकर ग...

Bolo ab geet likhu kispe

गीत: तुमने श्रृंगार उतार दिया, बोलो अब गीत लिखूँ किसपे। किसको मैं चांद लिखूँ बोलो, जब भाल तुम्हारा सूना है। तुम बगिया के जब फूल नही, तो व्यर्थ तुम्हे अब छूना है। वो झील ठिठक क...