Posts

Showing posts from September, 2019

Judaai ki ghadi ho jaise

ग़ज़ल: ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे। तेरा मिलना भी जुदाई कि घड़ी हो जैसे।। अपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ।। रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।। मंज़िलें दूर भ...

Tumhe ab bhulna chahta hu

गीत: तुम्हें अब भूल जाना चाहता हूं ... लग रहा है साथ अपना इस जनम संभव न होगा, इसलिए मैं खुद तुम्हें अब भूल जाना चाहता हूं। हो सके तो माफ़ करना, पीर तुमको दे रहा हूं। तय हुआ था खिलखिल...