sheetal bajpai at hirdu kavyashala
आज की मुलाक़ात कानपुर की सुप्रसिद्ध कवयित्री डा. शीतल बाजपई जी से... पेश है उनका एक लोकप्रिय गीत अम्मा तुम अब भी घर में हो…
![]() |
डा. शीतल बाजपई (कानपुर) |
अम्मा
तुम अब भी घर में हो।
देखो ना! इन दीवारों पर परछाईं तेरी दिखती है।
आँगन की अलगनियों पर साड़ी भी सूखा करती
है।
अब भी अचार की महक तुम्हारी भंडरिया से
आती है।
अब भी लगता है फुकनी से, तू चूल्हे को सुलगाती है।
तुम
दिल में और नज़र में हो...
अम्मा
तुम अब भी घर में हो...
हर रोज सुबह लगता मुझको, तुम अभी कहीं से आओगी ।
जो भी बेमन का देखोगी, झूठा गुस्सा दिखलाओगी ।
जब कानों पर तकिया रख कर, हम डाँट तुम्हारी टालेंगे,
पापा को आने दो, कह कर तब फिर हमको धमकाओगी।।
तुम मन
के झूठे डर में हो...
अम्मा
तुम अब भी घर में हो...
हर गर्मी में, हर छुट्टी में, बिटिया को कौन बुलायेगा।
आयेगी जब वो घर अपने ,तो दिल से कौन लगायेगा ।
सर्दी में स्वेटर,दस्ताने,टोपी, मोजे
सब बुन-बुन कर ।
डाँट - डाँट के ठंडक में , अब कौन हमें पहनायेगा ।।
यादों
के हर मंजर में हो...
अम्मा
तुम अब भी घर में हो...
वो नारंगी वाला स्वेटर ,जो पिछले साल बनाया था।
मैंने देहाती कह उसको, टेढ़ा सा मुंह बिचकाया था।
वो आज निकाला बक्से से, पहना जब उसको तब देखा,
हर इक फन्दें में माँ तेरी ममता का सार
समाया था।।
आँसू
के गहन भँवर में हो…
अम्मा
तुम अब भी घर में हो…
कोई जादू सा करती थी, वो थपकी तेरे हाथों की।
हँस-हँस कर तूने वारी थी, कितनी ही नींदें रातों की।
मेरे हँसने पर हँसती थी , मेरे
रोने पर रोती थी,
तेरी बातों में बस चर्चा , होती थी मेरी बातों की।।
अब किस
अनजान सफर में हो…
अम्मा
तुम अब भी घर में हो...
- डा. शीतल बाजपई
Comments
Post a Comment