Deepak awasthi at hirdu kavyashala

आज रू-ब-रू होते हैं कम उम्र के उस बड़े शायर से... जिसकी कहन बड़े - बड़े शायरों को दाँतों तले उँगलियाँ दबाने पे मजबूर कर देती है... हम बात कर रहे हैं नबाबों के शहर लखनऊ से ता'अल्लुक़ रखने वाले नौजवान शायर दीपक अवस्थी जी की... शायरीबाज़ी का एक अलग अंदाज़ दीपक जी की शायरी को बेहद खास बना देता है...आइए लुत्फ़ लेते हैं दीपक भाई की एक ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल का...
दीपक अवस्थी
आटा, चावल, दाल लिखूंगा ग़ज़लों में।
हर तबक़े  का हाल लिखूंगा ग़ज़लों में।।

चौका-बासन, कपड़ा-लत्ता, सिलवट्टा,
है ख़ाली जंगाल , लिखूंगा ग़ज़लों में।।

गोलीबारी ,पत्थरबाजी, दंगे,ख़ून,
ये किसकी है चाल, लिखूंगा ग़ज़लों में।।

कर्ज़ा ,सूखा ,फाँसी का फंदा , फिर मौत
अनचाही हड़ताल, लिखूंगा ग़ज़लों में।।

झूठे दावे ,वादे ,मुद्दे ,सरकारी,
फिर झूठी पड़ताल, लिखूंगा ग़ज़लों में।।

जब भी दिल में प्यार उमड़ कर आएगा,
मैं गोरी के गाल लिखूंगा ग़ज़लों में।।

मुझको कोई ख़ौफ़ नहीं है मरने का,
क्या कर लेगा काल, लिखूंगा ग़ज़लों में।।
-दीपक अवस्थी

विशेष:
दूर अपने से किसी पल नहीं होने देता।
वो मुझे आँख से ओझल नहीं होने देता।।
जब वो लौटेगा सफ़र से मेरे घर आएगा,
ये भरोसा मुझे पागल नहीं होने देता।।
- निकहत अमरोही
निकहत अमरोही
सालगिरह मुबारक़ हो मोहतरमा निकहत अमरोही साहिबा...

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