john elia at hirdu kavyashala


आज सफ़र करते हैं उर्दू अदब के उस बा – कमाल शायर के साथ जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी शायरी के नाम कर दी... हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के मशहूर – ओ – मारूफ़ शायर जनाब जॉन एलिया साहब की... जॉन साहब का जन्म 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा, भारत में हुआ था… जॉन साहब अपनी ख़ास लहजे की शायरी के लिए केवल पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर थे और आज भी वो शायरी - पसंद लोगों के दिलों में महफूज़ हैं… यानी, ग़ुमान, शायद जॉन साहब के प्रमुख संग्रह काव्यसंग्रह हैं...जॉन साहब  की मृत्यु 8 नवंबर 2004 को पाकिस्तान में हुई…

पेश – ए – ख़िदमत हैं उनके चाहने वालों के नाम जॉन साहब की एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जॉन एलिया
ग़ज़ल:
तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है!
तेरे साथ तेरी याद आई, क्या तू सचमुच आई है!!

शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का,
मुझ को देखते ही जब उन की अँगड़ाई शरमाई है!!

उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास,
जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है!!

हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुँचाना है,
हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुँचाई है!!

हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में,
सोज़ ए रक़बत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है!!

हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे,
पागल कुछ तो सोच यह तू ने कैसी शक्ल बनाई है!!

इश्क़ ए पैचान की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े,
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है!!

हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम,
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है!!

आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था,
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की खुश्बू आई है!!

एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ,
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है!!
- जॉन एलिया

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