kamlesh dwivedi at hirdu kavyashala
आज मिलते हैं देश के सुप्रसिद्द कवि डा. कमलेश द्विवेदी जी से... आज तक आपने माँ पे न जाने कितनी ही कवितायें सुनी होंगी, पढ़ी होंगी...
माँ शब्द ही स्वयं में एक कविता है... आज हिर्दू काव्यशाला पेश करता है कमलेश जी
की एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल और एक गीत माँ पर... और इससे ज़्यादा क्या कहूं... एक तरफ
कमलेश जी की कलम का कोई सानी नहीं है दूसरी तरफ अगर उन्वान माँ हो तो कहना ही क्या, बस इतना ही पर्याप्त है-
"माँ तो आख़िर माँ होती है...उसकी क्या उपमा होती है..."
"माँ तो आख़िर माँ होती है...उसकी क्या उपमा होती है..."
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डा. कमलेश द्विवेदी जी |
ग़ज़ल
–
जब
से बेटे से बिछड़ी वो खाना-पीना भूल गयी।
ऐसा
लगता है जैसे माँ जीवन जीना भूल गयी।।
बेटा
पेड़ बना पौधे से माँ ने यों ख़ुशियाँ पायीं,
उसको
सींचा देकर कितना ख़ून-पसीना भूल गयी।।
बेटे
के बेटे की ख़ातिर कितने कपड़े सी डाले,
ख़ुद
का दामन तार-तार था उसको सीना भूल गयी।।
जब
भी उसको पढ़ती है वो रोती ख़ूब अकेले में,
कब
आया था बेटे का ख़त साल-महीना भूल गयी।।
जितना
प्यार बड़े से उसको छोटे से भी उतना है,
किसने
उसको पहुँचाया सुख किसने छीना भूल गयी।।
जब
बरसों का बिछड़ा बेटा दरिया के उस पार दिखा,
कूद
पड़ी पानी में पगली और सफ़ीना भूल गयी।।
गीत
–
यहाँ
सभी सुख-सुविधायें हैं लेकिन सुख का सार नहीं है।
मिला
शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।
घर
में खायें या होटल में,
मिल
जाती है पूरी थाली।
लेकिन
यहाँ नहीं मिल पाती,
रोटी
माँ के हाथों वाली।
तन
का सुख है पर मन वाला वो सुखमय संसार नहीं है।
मिला
शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।
अक्सर
सपने में दिख जाते,
माँ
के पाँव बिंवाई वाले।
धान
कूटने में पड़ जाने,
वाले
वो हाथों के छाले।
फिर
भी घर के काम-काज से माँ ने मानी हार नहीं है।
मिला
शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।
हम
सब होली पर रँग खेलें,
दीवाली
पर दीप जलायें।
बच्चों
के सँग हँसी-ख़ुशी से,
घर
के सब त्यौहार मनायें।
पर
सच पूछो तो माँ के बिन कोई भी त्यौहार नहीं है।
मिला
शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।
बच्चों
के सुख की खातिर माँ,
जाने
क्या-क्या सह लेती है।
हम
रहते परिवार साथ ले,
पर
माँ तनहा रह
लेती है।
माँ
के धीरज की धरती का कोई पारावार नहीं है।
मिला
शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।
अपने
लिए नहीं जीती माँ,
सबके
लिए जिया करती है।
घर
को जोड़े रखने में वो,
पुल
का काम किया करती है।
माँ
के बिना कल्पना घर की करना सही विचार नहीं है।
मिला
शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।
- डॉ.कमलेश द्विवेदी
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