Kumar vijay at hirdu kavyashala
आज मिलते हैं साहित्य नगरी कानपुर के बहुचर्चित शायर कुमार विजय साहब से... एक अलग लहज़ा, एक अलग कहन कुमार साहब को बाकी शायरों से अलग करती है...आइए लुत्फ़ लेते हैं कुमार साहब की एक ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल का...
उसने कर दिया ज़ाहिर क्या छुपा है सीने में।
गर न हो मोहब्बत तो क्या मज़ा है जीने में।।
होता है मोहब्बत का ख़ुशनुमा सा कुछ एहसास,
सर्दियाँ बिखरती हैं जून के महीने में।।
इश्क़ और मोहब्बत का कोई न हो पैमाना,
छोड़ दो ये तय करना क्या लिखा सफ़ीने में।।
मय से लाख बेहतर तो है नशा मोहब्बत का,
कोई बतलाए मुझको क्या मज़ा है पीने में।।
दिल की ये आराइश है देख लो नज़र भर के,
कह रहा कुमार तुमसे क्या रखा नगीने में।।
- कुमार विजय
हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें:
शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक
संतोष शाह, सह-संस्थापक
रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
संपर्क सूत्र- 8896914889, 8299565686, 7080786182
ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com
वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com
ब्लॉगर- www.hirdukavyashala.blogspot.in
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कुमार विजय |
गर न हो मोहब्बत तो क्या मज़ा है जीने में।।
होता है मोहब्बत का ख़ुशनुमा सा कुछ एहसास,
सर्दियाँ बिखरती हैं जून के महीने में।।
इश्क़ और मोहब्बत का कोई न हो पैमाना,
छोड़ दो ये तय करना क्या लिखा सफ़ीने में।।
मय से लाख बेहतर तो है नशा मोहब्बत का,
कोई बतलाए मुझको क्या मज़ा है पीने में।।
दिल की ये आराइश है देख लो नज़र भर के,
कह रहा कुमार तुमसे क्या रखा नगीने में।।
- कुमार विजय
हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें:
शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक
संतोष शाह, सह-संस्थापक
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kya baat kumar saab
ReplyDeleteBahot khoob bhai.. ...👏👏👏
ReplyDeleteLajawab
ReplyDeleteWah kumar sab ji
ReplyDeleteWah kumar sab ji
ReplyDeleteWaah sir ji
ReplyDeleteवाह कुमार साहब...!!
ReplyDeleteKya bat hain.
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