Kumar vijay at hirdu kavyashala

आज मिलते हैं साहित्य नगरी कानपुर के बहुचर्चित शायर कुमार विजय साहब से... एक अलग लहज़ा, एक अलग कहन कुमार साहब को बाकी शायरों से अलग करती है...आइए लुत्फ़ लेते हैं कुमार साहब की एक ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल का...
कुमार विजय
उसने कर दिया ज़ाहिर क्या छुपा है सीने में।
गर न हो मोहब्बत तो क्या मज़ा है जीने में।।

होता है मोहब्बत का ख़ुशनुमा सा कुछ एहसास,
सर्दियाँ बिखरती हैं जून के महीने में।।

इश्क़ और मोहब्बत का कोई न हो पैमाना,
छोड़ दो ये तय करना क्या लिखा सफ़ीने में।।

मय से लाख बेहतर तो है नशा मोहब्बत का,
कोई बतलाए मुझको क्या मज़ा है पीने में।।

दिल की ये आराइश है देख लो नज़र भर के,
कह रहा कुमार तुमसे क्या रखा नगीने में।।
- कुमार विजय

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