Lull kanpuri at hirdu kavyashala

आज मिलते हैं साहित्य नगरी कानपुर के बहु-चर्चित हास्य व्यंग्यकार कवि डा. अजीत सिंह राठौर जी से... काव्य जगत इन्हें लुल्ल कानपुरी के नाम से जानता है... आपके समक्ष है लुल्ल जी की एक कविता...
लुल्ल कानपुरी 

एक
दिन
पुरानी किताब में
सूखा गुलाब
क्या मिल गया
पूरा इतिहास
आखों के सामने आया
ख़्वाब मुस्कराया
वो
महकुआ तेल का
खोपड़ी पर ठोकना
पाटनवाला का अफगान स्नो
मुहँ पर चुपरना
कन्नौज की जन्नते फिरदौस की
कली कान में लगाना
घंटो शीशे के सामने
खड़े होकर
बुलबुलिया सोट कर
स्कूल का जाना
एक स्थान पर स्वयं का बैठना
दूसरे स्थान पर उसके लिए
धीरे धीरे
बस्ता सरकना
न दिखाई पड़ने पर
मन में आशंकाओं के
ज्वार भाटा आते रहते
तब तक हम चुप रहते
दिल दिमाग दृष्टि का त्रिभुज
क्लास रूम के
दरवाजे के चौखट के
चतुर्भुज में लटका रहता
इस बीच
मास्टर साहब के
प्रश्नों का मेरे पास
कोई उत्तर न होता
सिर्फ
उनकी छड़ी
कभी हाथ पर कभी पीठ पर
मोटी पतली रेखाओ की
प्रमेय निर्मेय बनाती रहती
ये
मिट्टी की देह
उनके लिए सब सहती
त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग
दो समकोण होता
हमसे कभी न हल होता
अलबत्ता
मास्टर साहब मारते मारते
हमें त्रिभुज बना देते
और स्वयं
सरल रेखा पर बने
180 अंश के कोण की तरह
फूलते पचकते हांफते कांपते
कुर्सी में धस कर बैठ जाते
वैसे तो दिन मे कई बार
केंद्र में बिल्लो रानी को रख
काल्पनिक त्रिज्या सेअपने को
 बंधा महसूस करते हुए
बृत्त की परिधि पर
तेली के बैल सा चलते हुए
दिन में कई बार चक्कर लगाते
360 अंश पूरा कर लेते पर
त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग
180 अंश होता हमसे कभी न सिद्ध होता
शरीर पर छड़ी पड़ने से उत्पन्न तरंग
छड़ी देख कर शरीर में उत्पन्न कम्पन्न
छड़ी के शरीर मे पड़ने से उत्पन्न
आत्मीय विचलन
V = N Lamda का असर
मुँह पर बने रिक्टर स्केल पर बने
न्युन कोण .सम कोंण .अधिक कोंण से
दर्द की तीब्रता का अहसास पूरी कक्षा
अपने आप लगा लेती
और पीछे वाले
झंडू बाम झंडू बाम पीड़ा हारी बाम
हाथों से लगाने के स्थान का दिग्दर्शन कराते
और उनके आ जाने पर
शुरू हो जाती
आखों आखों में C I D जांच
क्या हुआ .क्या क्या हुआ
जल्दी उवाच
साईकल की चैन उतर गई क्या ?
साईकल पंचर हो गई क्या ?
साईकल भिड़ गई क्या ?
नही नही
दुपट्टा साईकल के पिछले पहिये मे
फ़स गया गला कस गया
कितनी बार कहा है
ठीक से चला करो
ये दिल है कि मानता नही
वक़्त के तूफान ने
हम दो लव बर्ड्स को
न जाने कहाँ का कहाँ उड़ा दिया
एक
दिन
दरवाज़े की घंटी बजी
सजी धजी
वह काल्पनिक चिन्ह जिसमे लंबाई और मोटाई न पाई जाय
विंदु कहलाती है
काफी मोटाई लिए .काफी लंबाई लिए
सावन भादों की रेखा बनी
अपने चार बच्चों और निरीह पति के साथ
परिवार नियोजन के इनवर्टेड ट्रैंगिल को
धता बताते हुए सामने आ जाती है
दिल पर छा जाती है
बच्चों से हमारा परिचय ये तुम्हारे
मां एस्क्वायर मामा जी है
इनको नमस्ते करो इनसे न डरो
दिन भर चर्चाओ के दौर चलते रहे
घनत्व और आयतन के हिसाब से
हम उसमे डूबते उतराते रहे
रात को डाइनिंग टेबल पर
हम उसका पति और वो
त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग
दो सम कोंण होता
सिद्ध करते रहे पर
आज तक
इति सिद्धम न कर पाए    
- लुल्ल कानपुरी

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