manish meet at hirdu kavyashala

आज मुलाक़ात करते हैं कानपुर के जाने - माने शायर श्री मनीष "मीत" जी से... यूं तो मीत जी का परिचय देना हास्यास्पद लगता हैं... क्योंकि उनके ज़िक्र से पहले ही शायरी उनका पता बता देती है... महफ़िलों में अपने ख़ास अंदाज़... नायाब तरन्नुम से सुनने वालों को अपनी तरफ खींचने का हुनर कोई मीत जी से सीखे... पेश - ए - ख़िदमत है उनकी बहुचर्चित मतला - ए - ग़ज़ल... तौबा - तौबा...

मनीष "मीत"


झील समंदर  कंवल  कटारी तौबा-तौबा
नयन की उपमा इतनी सारी तौबा-तौबा

कलियाँ  खुशबू  केसर क्यारी तौबा-तौबा,
जिस्म है उसका या फुलवारी तौबा-तौबा।

करवट  बिस्तर  नींद ख़ुमारी तौबा-तौबा,
क़त्ल   की  है   पूरी  तैयारी  तौबा-तौबा।

क़ातिल  आँहें  अदा शिकारी तौबा-तौबा,
उस  पर मोहर  भी  सरकारी तौबा-तौबा।

चाँद-सितारों  तक  हक़दारी तौबा-तौबा,
सूरज   में   भी   हिस्सेदारी  तौबा-तौबा।
- मनीष "मीत"

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