Peeyush sharma at hirdu kavyashala
आज मिलते हैं शाहजहाँपुर के युवा गीतकार पीयूष शर्मा से... प्रस्तुत है पीयूष जी का एक बहुचर्चित गीत...
गीत -
तुम अमर मंत्र हो, प्रेम के ग्रंथ का
मैं कदाचित तुम्हें,भूल सकता नहीं ।
वेदनाएँ भले संधि मुझसे करें
चाँद चाहे मुझे खोजता ही रहे
नाम जपता रहूँगा तुम्हारा सदा
ये जहाँ फिर भले रोकता ही रहे
तुम इसे झूठ समझो मगर सत्य है
अब हृदय बिन तुम्हारे धड़कता नहीं ।
प्रेम के नीर से तुम भरा कूप हो
मंदिरों में खिली गुनगुनी धूप हो
आदि से अंत तक है तुम्हारी चमक
तुम अवध की सुबह का मधुर रूप हो
दूर रहकर हवन मत करो प्यार का
पास आओ बदन अब महकता नहीं ।
नृत्य जब तुम करो, संग नाचे पवन
गीत जब तुम पढ़ो, गुनगुनाए गगन
कर्म संसार के पूर्ण मिथ्या लगें
प्रेम जब तुम करो मीत होकर मगन
भीग जाए भले पीर से तन-बदन
किन्तु यौवन तुम्हारा बहकता नहीं ।
-पीयूष शर्मा
हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें:
शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक
संतोष शाह, सह-संस्थापक
रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
संपर्क सूत्र- 8896914889, 8299565686, 7080786182
ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com
वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com
ब्लॉगर- www.hirdukavyashala.blogspot.in
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पीयूष शर्मा |
तुम अमर मंत्र हो, प्रेम के ग्रंथ का
मैं कदाचित तुम्हें,भूल सकता नहीं ।
वेदनाएँ भले संधि मुझसे करें
चाँद चाहे मुझे खोजता ही रहे
नाम जपता रहूँगा तुम्हारा सदा
ये जहाँ फिर भले रोकता ही रहे
तुम इसे झूठ समझो मगर सत्य है
अब हृदय बिन तुम्हारे धड़कता नहीं ।
प्रेम के नीर से तुम भरा कूप हो
मंदिरों में खिली गुनगुनी धूप हो
आदि से अंत तक है तुम्हारी चमक
तुम अवध की सुबह का मधुर रूप हो
दूर रहकर हवन मत करो प्यार का
पास आओ बदन अब महकता नहीं ।
नृत्य जब तुम करो, संग नाचे पवन
गीत जब तुम पढ़ो, गुनगुनाए गगन
कर्म संसार के पूर्ण मिथ्या लगें
प्रेम जब तुम करो मीत होकर मगन
भीग जाए भले पीर से तन-बदन
किन्तु यौवन तुम्हारा बहकता नहीं ।
-पीयूष शर्मा
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संतोष शाह, सह-संस्थापक
रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
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