rajeev raaj at hirdu kavyashala
आज मिलते हैं देश के जाने माने गीतकार डा. राजीव राज से... पेश है उनका एक गीत... मन बहका बहका है...
रात डायरी के कुछ पन्ने पलटे थे,घर का कोना-कोना महका-महका है।।...
वो सूखा गुलाब था या मय का प्याला,
ग़ज़ब ख़ुमारी है मन बहका-बहका है।।...
गर्मी की छुट्टी के दिन आये ही थे,
अलख सबेरे बिजली सी कौंधी छत पर।
घुली हवा में उसकी सौंधी बोली ज्यों,
खुली केवड़े की शीशी औंधी छत पर।
मैना के हाज़िरी लगाने के ढंग पे,
मन तोते सा अब भी चहका चहका है।।...
खेतों की पगडण्डी पर पीछे - पीछे,
बेमतलब , बेमक़सद कितनी बार गये।
अजब खेल था खेल खेल में लड़े नयन,
दिल बेचारे जाने कैसे हार गये।
हाथों में ही मुरझा गये गुलाब सभी
बिन बरसे लौटे बादल तन दहका है।।...
पूरे ग्यारह मास तपस्या के तप से,
हर गर्मी उसका नानी के घर आना
और जेठ भर भर-भर नयन देखना भर,
विदा समय बरबस आँखों का भर आना
पलकों की सीपी से बाहर आ न सका,
प्यार का वो मोती यादों में लहका है।।....
- डॉo राजीव राज़
हिर्दू काव्यशाला
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बेहद खूबसूरत पंक्तिया दादा जी
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