Ram prakash bekhud at hirdu kavyashala
आज रू-ब-रू होते हैं हिंदी-उर्दू अदब के एक बा-कमाल शायर ज़नाब राम प्रकाश बेख़ुद साहब से... शायरी में एक नयापन, एक अलग लहज़ा बेख़ुद साहब की शायरी को भी बेहद ख़ास बनाता है... पेश - ए - ख़िदमत है बेख़ुद साहब की एक बेहद ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल...
हर तरफ़ जाले थे बिल थे घोंसले छप्पर में थे!
जाने कितने घर मेरे उस एक कच्चे घर में थे!!
हारने के बाद मैं ये देर तक सोचा किया,
सामने दुश्मन थे मेरे या मेरे लश्कर में थे!!
दस्त-ए- शहजादी से नाज़ुक कम न थे दस्त-ए-कनीज़,
एक में मेंहदी रची थी इक सने गोबर में थे!!
चंद सूखी लकड़ियां जलती चिता ख़ामोश राख,
जाने कितने ख़ुश्क मंज़र उसकी चश्म-ए-तर में थे!!
हम तो दरिया-ए-जुनूं थे हमको कैसे रोकते,
होश के पत्थर हमारे पांव की ठोकर में थे!!
हश्र में हर आदमी इक बार सोचेगा ज़रूर,
मर के हम महशर में हैं या जीते जी महशर में थे!!
आजकल तो आदमी में आदमी मिलता नहीं,
पहले सुनते हैं कि बेख़ुद देवता पत्थर में थे!!
- राम प्रकाश बेख़ुद
हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें:
शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक
संतोष शाह, सह-संस्थापक
रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
संपर्क सूत्र- 8896914889, 8299565686, 7080786182
ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com
वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com
ब्लॉगर- www.hirdukavyashala.blogspot.in
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राम प्रकाश बेख़ुद |
हर तरफ़ जाले थे बिल थे घोंसले छप्पर में थे!
जाने कितने घर मेरे उस एक कच्चे घर में थे!!
हारने के बाद मैं ये देर तक सोचा किया,
सामने दुश्मन थे मेरे या मेरे लश्कर में थे!!
दस्त-ए- शहजादी से नाज़ुक कम न थे दस्त-ए-कनीज़,
एक में मेंहदी रची थी इक सने गोबर में थे!!
चंद सूखी लकड़ियां जलती चिता ख़ामोश राख,
जाने कितने ख़ुश्क मंज़र उसकी चश्म-ए-तर में थे!!
हम तो दरिया-ए-जुनूं थे हमको कैसे रोकते,
होश के पत्थर हमारे पांव की ठोकर में थे!!
हश्र में हर आदमी इक बार सोचेगा ज़रूर,
मर के हम महशर में हैं या जीते जी महशर में थे!!
आजकल तो आदमी में आदमी मिलता नहीं,
पहले सुनते हैं कि बेख़ुद देवता पत्थर में थे!!
- राम प्रकाश बेख़ुद
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रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
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वाआआह वाह सर
ReplyDeleteवाह बेहतरीन
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