Sumit dilkash at hirdu kavyashala

आज रू-ब-रू होते हैं कानपुर के सुप्रसिद्ध कवि एवं शायर सुमित द्विवेदी दिलकश से... अपनी बेबाक़ी से दिलकश जी कवियों/शायरों की सफ़ में अलग दिखाई पड़ते हैं... आपके समक्ष प्रस्तुत है दिलकश जी का एक गीत...
सुमित द्विवेदी दिलकश

हैं कोशिशें जहाँ पर क़ाफिर की जां के हक़ में,
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!
हाथों में ले के पत्थर सड़कों पे नाचते हैं,
जिस डाल पर हैं बैठे खुद वो ही काटते हैं,
बच्चे नहीं रहें जब खुद अपनी माँ के हक़ में,
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!

अहसान फ़रामोशी क़ाबिज़ है पूरे दम से,
घाटी सिसक रही है बन्दूक गोली बम से,
चलने लगें हवाएं भी जब खिज़ां के हक़ में,
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!

गद्दारी कर रहे हैं अपने वतन से देखो,
रिश्ता जुड़ा हुआ है औरों के मन से देखो,
जब भाई अपना खोले लब जाहिलां के हक़ में,
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!

कितना करेंगे हम भी गैरों पे वार बोलो,
जब घर में ही छुपे हैं क़ातिल के यार बोलो,
आदेश देगी दिल्ली जब भी जवां के हक़ में,
नारा तभी लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!
नारा तभी लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!

हैं कोशिशें जहाँ पर क़ाफिर की जां के हक़ में,
नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !!
- सुमित द्विवेदी दिलकश

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कानपुर विशेष: बहुत - बहुत बधाई डा. रश्मि कुलश्रेष्ठ जी

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