vikas soni at hirdu kavyshala

आज चलते हैं उस नौजवान कवि एवं शायर के हुज़ूर... जब वो अपने शेर कहते है तो बड़े - बड़े शायर भी बगलें झाँकने लगते हैं... जी हम बात कर रहे हैं शहीद नगरी शाहजहांपुर के विकास सोनी "ऋतुराज" की... जैसा तखल्लुस है वैसा भी अंदाज़... लोगों को इंतज़ार है ऋतुराज जी के मुक्तकों का... चाहे बात देश की हो या इश्क़ की ऋतुराज के मुक्तक लोगों को अपनी तरफ खींच ही लेते हैं... आज लुत्फ़ लेते हैं ऋतुराज जी की एक ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल का मगर उससे पहले... उनके कुछ मुक्तक...
विकास सोनी "ऋतुराज"
मुक्तक– 
गले अपने लगा उसको महकता छोड़ आया हूँ।
मिलन साँसों का साँसों से हसीं मैं जोड़ आया हूँ।
करेगा याद जब मुझको, हया से लाल वो होगा,
मैं होठों पर मुहब्बत की, निशानी छोड़ आया हूँ।

हमारी  बेक़रारी  को  वो  ऐसे  आज़माते  हैं।
घटा काली घिरे जब भी हमें मिलने बुलाते हैं।
झटक कर ज़ुल्फ़ को अपनी हमारे पास हैं आते,
बरस जाता है फिर सावन गले जब वो लगाते हैं।

तुम्हारे सामने अपना यही इज़हारे उल्फ़त है।
हक़ीक़त है यही अपनी कि बस तुमसे मुहब्बत है।
बसे हो सिर्फ दिल में तुम तुम्हारे ख़्वाब आंखों में,
हमारी ज़िन्दगी को अब तुम्हारी ही ज़रूरत है।

करो विश्वास तुम मेरा नहीं कुछ झूठ कहता हूँ।
तुम्हारे  ही ख्यालों से  जवाँ दिन रात  रहता हूँ।
तुम्हारे  पास  आने  को  जरूरी  दूरियाँ  भी हैं,
तभी इन दूरियों को प्यार से चुपचाप सहता हूँ।

अगर नापाक दिल है तो इबादत हो नहीं सकती।
किसी को देख भर लेने से चाहत हो नहीं सकती।
किसी को ठीक से पहचान पाना है बहुत मुश्किल,
कभी दो चार बातों से मुहब्बत हो नहीं सकती।

ग़ज़ल –
हाल दिल का तुझे बताऊं क्या।
ज़ख्म तेरे दिए दिखाऊं क्या।

लोग पागल न लें समझ मुझको,
इसलिए भूल तुझको जाऊं क्या।

ज़िंदगी चार दिन की होती है,
चाहतों का शजर लगाऊं क्या।

रात भर सोचता रहा तन्हा,
है जो रूठा उसे मनाऊं क्या।

आज 'ऋतुराज' आ रहा है वो,
क्या करूं घर को मैं सजाऊं क्या।
- विकास सोनी ऋतुराज

दीप्ति वर्मा की तसवीर पर कहे गए कुछ शेर...
अजीब बात है ये शाह राह है लेकिन,
इधर से कोई न गुज़रा कई ज़मानों से।।
- सुधीर बेकस
मैं मेरी तन्हाई और बीरान रास्ते,
सफर लंबा है पर नामुमकिन नही।।
- ऋषभ रिशु
जिनकी किस्मत मंज़िलें पाना नहीं
ऐसे भी कुछ रास्ते हैं शह्र में।।
- नज़ीर नज़र
किस की आमद की है उमीद अहमद,
छा गई है बहार सड़कों पर।।
- अहमद सिद्दीकी
हूँ भटक रही प्रियतम तेरी इन गलियों में,
प्रेम पथ पे चलके कुछ हुआ न हासिल है।।
- शिवांगी मिश्रा
(अगली तसवीर बहुत जल्द)
 
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