Anand tanha at hirdu kavyashala
आज मिलते हैं कानपुर के सुप्रसिद्ध शायर आंनद तन्हा साहब से और लुत्फ़ लेते हैं उनकी एक बहुचर्चित ग़ज़ल "शायद" का...
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आनंद तन्हा |
ग़ज़ल:
बात मेरी नहीं बनी शायद।
बात मेरी नहीं बनी शायद।
रह गयी है कहीं कमी शायद।
इश्क़ जिसको समझ लिया हमने,
आपकी थी वो दोस्ती शायद।
आरिज़ो पर चमक रहे अब भी,
अश्क उसके हैं शबनमी शायद।
दब गयी है किसी की रग दुखती,
आपने की है दिल्लगी शायद।
अक़्स कहने लगा है अब मुझसे,
तुम को देखा है अजनबी शायद।
है सबब रोशनी का महफ़िल में,
उसकी तशरीफ़ आवरी शायद।
हर जगह शमआ हम जलायेंगे,
तंग आ जाये तीरगी शायद।
सिर्फ़ हम आपसे ही कह सकते,
देखिये नब्ज़ चल रही शायद।
कर रहा है तहस-नहस दुनिया,
अब नहीं यह वो आदमी शायद।
- आनंद तन्हा
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