Anuj Abra at hirdu kavyashala

आज आपकी मुलाक़ात करवाते हैं एक बेहद अलग अंदाज़ के शायर जनाब अनुज अब्र साहब से... आप अपने लहजे की शायरी से अदब की ख़िदमत कर रहे हैं...पेश - ए - ख़िदमत है अब्र साहब की एक बेहद हसीन ग़ज़ल...
अनुज अब्र
इसी उसूल पे उसका निज़ाम चलता है।
कि कांटा पांव का कांटे से ही निकलता है।।

हम उस चराग को अपना लहू भी दे देंगे,
वो जो ख़िलाफ़ अंधेरे के रोज जलता है।।

जमीं तवाफ़ किये जा रही है इसका और,
समझते हम हैं कि ये आफ़ताब चलता है।।

मेरी ये बात हमेशा दिमाग में रखना,
हज़ार वक्त बुरा हो मगर बदलता है।।

ये कौन बात अकेले में करता है मुझ से,
ये कौन छत पे मेरे साथ साथ चलता है।।

गए हो आग लगा कर न जाने ये कैसी,
कि दिल में आज तलक इक अलाव जलता है।।

अनुज यकीन कभी उस पे तुम नहीं करना,
हर एक बार जो अपना कहा बदलता है।।
- अनुज अब्र

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