Arvind mishra at hirdu kavyashala
आज आपके बीच हैं शहीदनगरी शाहजहांपुर से लोकप्रिय व्यंग्यकार एवं गीतकार स्व. अरविंद मिश्र... बेबाक़ ज़बान... बेख़ौफ़ अंदाज़... मिश्र जी की यही शैली उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग करती है... आज हम पढ़ते हैं स्मृतिशेष अरविंद जी के बहुचर्चित दो गीत... और नमन प्रेषित करते हैं उन्हें... (विनम्र श्रद्धांजलि)
गीत - 1
नहीँ पराजित हुआ युद्ध से,
समझोतों से हारा हूँ।
यह मत कहना लोगो मुझसे,
मैं कितना बेचारा हूँ।।
श्रद्धा से झोली में हमने,
बहुत सहेजा विश्वासों को।
नहीं व्यक्त कर पाया हूँ,
जीवन भर एहसासों कों।।
नहीं बेचता स्वाभिमान मैं,
गलियों में, बाजारों में...
यह मत कहना लोगो मुझसे,
मैं कितना नाकारा हूँ।
नहीँ पराजित हुआ युद्ध से,
समझोतों से हारा हूँ।।
अपने अपने द्रष्टिकोण है,
है अपनी अपनी सीमाएं।
नहीँ ज़रूरी अपनी पीड़ा,
का रहस्य भी समझाएं।।
हर घर में घर की तलाश है,
सड़क नापना मजबूरी...
यह मत कहना लोगो मुझसे,
मैं कितना आवारा हूँ।
नहीँ पराजित हुआ युद्ध से,
समझोतों से हारा हूँ।।
गीत - 2
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
चली बयार जरा से पछुआ जेवर बदल गए...
प्यार वासना में परिवर्तित,
राधा लाज़ बचाये।
सोते मिले जटायु यहाँ पर,
सीता क्या चिल्लाये।।
धर्म अर्थ और काम मोक्ष के फ्लेवर बदल गए...
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
पानी नहीं अलग होता है,
कहते लाठी मारे।
घर के युद्ध सड़क पर आये,
मुखिया हुए बेचारे।।
आँगन में दीवार उठी क्या देवर बदल गए...
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
भ्रष्ट हुए उत्कृष्ट ,
सत्य जा छिपा कुहासे में
सबकी आखें टिकी हुईं,
शकुनी के पांसे में।।
निहित स्वार्थ थे पंचायत के फेवर बदल गए...
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
- स्व. अरविंद मिश्र
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संतोष शाह, सह-संस्थापक
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वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com
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स्व. अरविंद मिश्र |
नहीँ पराजित हुआ युद्ध से,
समझोतों से हारा हूँ।
यह मत कहना लोगो मुझसे,
मैं कितना बेचारा हूँ।।
श्रद्धा से झोली में हमने,
बहुत सहेजा विश्वासों को।
नहीं व्यक्त कर पाया हूँ,
जीवन भर एहसासों कों।।
नहीं बेचता स्वाभिमान मैं,
गलियों में, बाजारों में...
यह मत कहना लोगो मुझसे,
मैं कितना नाकारा हूँ।
नहीँ पराजित हुआ युद्ध से,
समझोतों से हारा हूँ।।
अपने अपने द्रष्टिकोण है,
है अपनी अपनी सीमाएं।
नहीँ ज़रूरी अपनी पीड़ा,
का रहस्य भी समझाएं।।
हर घर में घर की तलाश है,
सड़क नापना मजबूरी...
यह मत कहना लोगो मुझसे,
मैं कितना आवारा हूँ।
नहीँ पराजित हुआ युद्ध से,
समझोतों से हारा हूँ।।
गीत - 2
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
चली बयार जरा से पछुआ जेवर बदल गए...
प्यार वासना में परिवर्तित,
राधा लाज़ बचाये।
सोते मिले जटायु यहाँ पर,
सीता क्या चिल्लाये।।
धर्म अर्थ और काम मोक्ष के फ्लेवर बदल गए...
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
पानी नहीं अलग होता है,
कहते लाठी मारे।
घर के युद्ध सड़क पर आये,
मुखिया हुए बेचारे।।
आँगन में दीवार उठी क्या देवर बदल गए...
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
भ्रष्ट हुए उत्कृष्ट ,
सत्य जा छिपा कुहासे में
सबकी आखें टिकी हुईं,
शकुनी के पांसे में।।
निहित स्वार्थ थे पंचायत के फेवर बदल गए...
मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए...
- स्व. अरविंद मिश्र
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Utkrishth rachnayeN
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय
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