Ishrat sagir at hirdu kavyashala
आज आपका तआर्रुफ़ कराते हैं उर्दू अदब के एक बेहद बाकमाल शायर जनाब इशरत सग़ीर "इशरत" साहब से... इशरत जी पेशे से बेसिक शिक्षा विभाग में बतौर असिस्टेंट टीचर अपनी ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं... इसके अलावा इशरत जी ने फ़ारसी की कई किताबों का हिंदी अनुवाद भी किया है...हाल ही में एक किताब "किताब-ए-ईरान (नील कमल प्रकाशन)" भी प्रकाशित हुई है...आइए लुत्फ़ लेते हैं गंगा-जमनी तहजीब के बेहद मोतबर शायर इशरत सग़ीर "इशरत" की शायरी का... पेश-ए-ख़िदमत है सग़ीर साहब की एक बेहद ख़ूबसूरत नज़्म... मगर उससे पहले चंद अ'शआर एक ग़ज़ल से...
ग़ज़ल-
![]() |
इशरत सग़ीर "इशरत" |
अब नहीं शिकवा करेंगें हम कभी तक़दीर से।
काम जब चलने लगे हों अक़्ल से तदबीर से।।
छोड़िये हज़रत तमाशे वो ज़माने लद गये,
जब डरा करते थे बच्चे शेर की तस्वीर से।।
उसकी बातें दिल की तस्कीं का सबब होती रहीं,
दर्द को आराम आया बर्फ़ की तासीर से।।
क़ैद में रह कर न आई हम को कुछ अक़्लो ख़िरद,
क्यों शिकायत कर रहे हैं पाँव की ज़ंजीर से।।
शायरी में अपनी इशरत क्यों न हो सोज़ो गुदाज़,
इक तअल्लुक़ जुड़ गया है अब जनाबे मीर से।।
-इशरत सग़ीर इशरत
सॉनेट नज़्म-
आपस में इत्तेहादो मुहब्बत बनी रहे...
जो दिल में है नफ़ाक़ वही दिल में अब न हो।
नफ़रत का कोई दाग़ किसी दिल में अब न हो।।
इस मुल्क की पुरानी रिवायत बनी रहे...
हिंदू को मुसलमाँ से लड़ाने के वास्ते।
आपस में इख़्तेलाफ़ सियासत की देन है,
यह ख़ौफ़ो इज़्तराब सियासत की देन है,
नफ़रत दिलों में और बढ़ाने के वास्ते।।
ऐसा न हो कि इसकी यह ताक़त बनी रहे...
जाने को जो जहाँ को गये वो वहीं के हैं,
लेकिन जो रह गये हैं यक़ीनन यहीं के हैं,
उनके लिये तो ग़ैरत-ओ-इज़्ज़त बनी रहे...
इस सरज़मीन के हैं इसी आशियाँ के हम।
हिन्दोस्ताँ हमारा है हिन्दोस्ताँ के हम।।
- इशरत सग़ीर "इशरत"
हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें:
शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक
संतोष शाह, सह-संस्थापक
रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
संपर्क सूत्र- 7080786182, 8299565686, 8896914889
ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com
वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com
ब्लॉगर- www.hirdukavyashala.blogspot.in
काम जब चलने लगे हों अक़्ल से तदबीर से।।
छोड़िये हज़रत तमाशे वो ज़माने लद गये,
जब डरा करते थे बच्चे शेर की तस्वीर से।।
उसकी बातें दिल की तस्कीं का सबब होती रहीं,
दर्द को आराम आया बर्फ़ की तासीर से।।
क़ैद में रह कर न आई हम को कुछ अक़्लो ख़िरद,
क्यों शिकायत कर रहे हैं पाँव की ज़ंजीर से।।
शायरी में अपनी इशरत क्यों न हो सोज़ो गुदाज़,
इक तअल्लुक़ जुड़ गया है अब जनाबे मीर से।।
-इशरत सग़ीर इशरत
सॉनेट नज़्म-
आपस में इत्तेहादो मुहब्बत बनी रहे...
जो दिल में है नफ़ाक़ वही दिल में अब न हो।
नफ़रत का कोई दाग़ किसी दिल में अब न हो।।
इस मुल्क की पुरानी रिवायत बनी रहे...
हिंदू को मुसलमाँ से लड़ाने के वास्ते।
आपस में इख़्तेलाफ़ सियासत की देन है,
यह ख़ौफ़ो इज़्तराब सियासत की देन है,
नफ़रत दिलों में और बढ़ाने के वास्ते।।
ऐसा न हो कि इसकी यह ताक़त बनी रहे...
जाने को जो जहाँ को गये वो वहीं के हैं,
लेकिन जो रह गये हैं यक़ीनन यहीं के हैं,
उनके लिये तो ग़ैरत-ओ-इज़्ज़त बनी रहे...
इस सरज़मीन के हैं इसी आशियाँ के हम।
हिन्दोस्ताँ हमारा है हिन्दोस्ताँ के हम।।
- इशरत सग़ीर "इशरत"
हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें:
शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक
संतोष शाह, सह-संस्थापक
रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
संपर्क सूत्र- 7080786182, 8299565686, 8896914889
ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com
वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com
ब्लॉगर- www.hirdukavyashala.blogspot.in
बहुतख़ूब.... इशरत सग़ीर।
ReplyDeletemarvellous, awesome poetry.
ReplyDeleteKhoobsoorat ashaar se saji ghazal aur behtreen nazm
ReplyDeleteBahot daad