Shabeena adeeb at hirdu kavyashala

आज रू-ब-रू होते हैं उर्दू अदब की उस बाकमाल शायरा से जिसने अपनी शायरी के दम पर पूरी दुनिया का सफ़र किया... जी हाँ, हम बात कर रहे हैं कानपुर से ता'अल्लुक़ रखने वाली हिंदुस्तान की मशहूर शायरा मोहतरमा शबीना अदीब साहिबा की... एक अलग लहजा, एक अलग अंदाज़ शबीना साहिबा को शायरी पसंद लोगों के दिलों में एक ख़ास जगह देता है... आइए लुत्फ़ लेते हैं शबीना साहिबा की एक ग़ज़ल का मगर उससे पहले उनकी एक नज़्म...
शबीना अदीब
नज़्म-
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो।
दिल दुखे जिससे अब ऐसी न कोई बात कहो।।

रोज़ रोटी के लिए अपना वतन मत छोड़ो।
जिसको सींचा है लहू से वो चमन मत छोड़ो।।
जाके परदेस में चाहत को तरस जाओगे।
ऐसी बेलौस मोहब्बत को तरस जाओगे।।
फूल परदेस में चाहत का नहीं खिलता है।
ईद के दिन भी गले कोई नहीं मिलता है।।
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो...

मैं कभी तुमसे करूंगी न कोई फरमाइश।
ऐश ओ आराम की जागेगी न दिल में ख्वाहिश।।
फातिमा बीबी की बेटी हूँ भरोसा रखो।
मैं तुम्हारे लिए जीती हूँ भरोसा रखो।।
लाख दुःख दर्द हों हंस हंस के गुज़र कर लूंगी।
पेट पर बाँध के पत्थर भी बसर कर लूंगी।।
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो...

तुम अगर जाओगे परदेस सजा कर सपना।
और जब आओगे चमका के मुकद्दर अपना।।
मेरे चेहरे की चमक ख़ाक में मिल जायेगी।
मेरी जुल्फों से ये खुशबू भी नहीं आएगी।।
हीरे और मोती पहन कर भी न सज पाऊँगी।
सुर्ख जूडे में भी बेवा सी नज़र आऊँगी।।
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो...

दर्दे फुरकत गम ए तन्हाई न सह पाउंगी।
मैं अकेली किसी सूरत भी न रह पाऊँगी।।
मेरे दामन के लिए बाग़ में कांटे न चुनो।
तुमने जाने की अगर ठान ली दिल में तो सुनो।।
अपने हाथों से मुझे ज़हर पिला कर जाना।
मेरी मिट्टी को भी मिट्टी में मिलकर जाना।।
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो...

ग़ज़ल-
ख़मोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फ़त नई-नई है।
अभी तक़ल्लुफ़ है गुफ़्तगू में, अभी मोहब्बत नई-नई है।।

अभी न आएँगी नींद न तुमको, अभी न हमको सुकूँ मिलेगा,
अभी तो धड़केगा दिल ज़ियादा, अभी मुहब्बत नई नई है।।

बहार का आज पहला दिन है, चलो चमन में टहल के आएँ,
फ़ज़ा में खुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है।।

जो खानदानी रईस हैं वो मिजाज रखते हैं नर्म अपना,
तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है।।

ज़रा सा कुदरत ने क्या नवाज़ा के आके बैठे हो पहली सफ़ में,
अभी क्यों उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई-नई है।।

बमों की बरसात हो रही है, पुराने जांबाज़ सो रहे है,
ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिसकी ताक़त न- नई है।।
- शबीना अदीब

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Comments

  1. जो डूबा रहता था जाम ओ मीना में आज बाहर निकल रहा है।
    अदब की दुनिया में आ के देखो हवाओं का रुख़ बदल रहा है।
    ©️®️Manjull Manzar Lucknowi

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