Hameed kanpuri at hirdu kavyashala
ग़ज़ल:
कुछ मुहब्बत वफा की निशानी तो है।
उसके चेहरे पे अब शादमानी तो है।
तीरगी सब जहां की मिटानी तो है।
रौशनी से धरा जगमगानी तो है।
आबरू शायरी की बचानी तो है।
इक ग़ज़ल फिर नई गुनगनाती तो है।
कुछ न कुछ लग रहा हैे कहानी तो है।
सामने देख कर हड़बड़ानी तो है।
आँख उसकी दिखी डबडबानी तो है।
साथ उसके हुई छेड़खानी तो है।
मूड उखड़ा हुआ उसका यूँ ही नहीं,
कुछ यक़ीनन हुई बदबयानी तो है।
कुछ सबब और है कह नहीं पा रहा,
बात उसको मुझे कुछ बतानी तो है।
अब पुरानी नहीं चल रही हैे मगर,
पास उसके नई लनतरानी तो है।
ग्रीन सिग्नल मुझे मिल गया प्यार का,
देखकर वो ज़रा मुस्कुरानी तो है।
पार पा जाऊँगा मसअलों से हमीद,
साथ मेरे मेरी खुशबयानी तो है।
- हमीद कानपुरी (अब्दुल हमीद इदरीसी)
179 , मीरपुर, कैण्ट ,कानपुर-208004
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