Suddhant deekshit at hirdu kavyashala
ग़ज़ल:
चाह कर अब हो नहीं पाउँगा मिर्ची की तरह।
घेर रक्खा है मुझे दुनिया ने चींटी की तरह।।
घूरती और नोंचती रहती है मुझको हर निगाह,
बन गया हूँ मैं हक़ीक़त कह के लड़की की तरह।।
जिस्म तो कितनों ने टांगे और उतारे,चल दिए,
रूह की ख़्वाइश में मुद्दत से हूँ खूंटी की तरह।।
अब भी जारी है सियासी दीमकों का चाटना,
मुल्क होता जा रहा है ठूठ लकड़ी की तरह।।
आग लगती है तो मरना तय हैं ऐसी ट्रेन में,
इश्क़ में दर है नहीं आपात खिड़की की तरह।।
एक दिन दुनिया को ले डूबेगी कुर्सी की हवस,
बुन रही है ये सियासत जाल मकड़ी की तरह।।
झूठ की मन्ज़िल बहुत सीधी है दुनिया में मगर,
अब भी सच्चाई का रस्ता है जलेबी की तरह।।
नारियल की ही तरह "सिद्धांत" ख़ुद को ढाल लो,
वरना पक जाने पे फट जाओगे ककड़ी की तरह।।
- सिद्धांत दीक्षित
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बेहद शुक्रिया हिर्दू काव्यशाला....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहमेशा की तरह सदाबहार