Ishrat saghir at hirdu kavyashala (interview special)

आज मिलते हैं शाहजहाँपुर के सुप्रसिद्ध ग़ज़लगो शाइरऔर अदीब (साहित्यकार) इशरत शाहजहाँपुरी साहब से...
इशरत शाहजहाँपुरी साहब

सवाल: आपकी नज़र में कविता क्या है?
जबाब: कविता या शाइरी एक रूहानी कैफियत का नाम है जिसको इल्हामियत से निसबत है़ । मेरी नज़र में शाइरी पाक़ीज़ा जज़्बात का मौज़ूँ इज़हार है।
सवाल: आप कब से लेखन कर रहे हैं?
जबाब: क़रीब दस सालों से मुसलसल इस दश्त की ख़ाक छान रहा हूँ ।२०१० में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में क़याम के दौरान मेरी ग़ज़ल को फ़र्स्ट प्राइज़ मिला और वहीं हॉल फंक्शन में मुझे पहली बार पढ़ने का मौक़ा मिला।
सवाल: कविता के लिए क्या ज़रूरी है भाव या व्याकरण?
जबाब: मैने कहा ये पाकीज़ा जज़्बात का इज़हार है इसमें व्याकरण या निज़ामे अरूज़ दूसरे नम्बर की चीज़ है अलबत्ता इस इज़हारे जज़्बात की कैफ़ियत को फ़न का दर्जा तब ही हासिल होगा जब इसके असूलो क़वायद पर दस्तरस पैदा हो।
सवाल: आज जिसे देखो अपने आगे कवि/शायर लगाए फिरता है  आप इसे क्या कहेंगे भाषा और साहित्य के प्रति लगाव या मंचीय चमक - धमक का आकर्षण?
जबाब: कवि/शाइर का खिताब कोई ऐसा ख़िताब नहीं जिसको नुमाइश के लिये बजा रखा जाये ये एक इन्आम है जो आपके फ़न की क़द्रशिनासी में दूसरे लोग आपको अता करते हैं।उस्ताद शोरा के यहाँ ये फ़ैशन राइज नहीं था।ये फ़ेसबुक का वाइरस है बस।जो लोग नुमाइश तलब हैं वो शौक़ से कवि या शाइर अपने नामों में जोड़ सकते हैं।
सवाल: कविता किस हद तक समाज की दशा और दिशा बदल सकती है?
जबाब: जगज़ाहिर है जब जब समाज को ज़रूरत पेश आई है कविता ने ही उसको राह दिखाई है।सूर ,तुलसी,कबीर,नानक,मीरा से लेकर मौलाना हाली, अल्लामा इक़बाल सब शाइर होने के साथ साथ समाज को दिशा देने वाले विचारक और फ़लसफ़ी भी थे।
सवाल: आप कविता के माध्यम से क्या करना चाहते हैं?
जबाब: अदब की ख़िदमत।
सवाल: आप हिर्दू के पाठकों से क्या कहना चाहेंगे?
जबाब: अच्छी शाइरी को तरजीह दें खराब की तरफ़ न बढ़ें।ऩये शाइरों में अच्छा कहने वालों के साथ साथ उस्ताद शोरा का मुताला दिल को ताज़गी देने के लिये हमेशा तैयार है।
इशरत साहब की एक ग़ज़ल:
साँस की रफ़्तार भी पकड़े रहे।
हम दिले बीमार भी पकड़े रहे।।
रक़्स भी करते रहे बाज़ार में,
दामने किरदार भी पकड़े रहे।।
आसमानों पर नज़र अपनी रही,
हाथ से दस्तार भी पकड़े रहे।।
बोलने की भी इजाज़त दी गई,
वो लबे इज़हार भी पकड़े रहे।।
मुन्हदिम करते रहे दिल का दयार,
हाँ मगर  दीवार भी  पकड़े  रहे।।
दिल में तख़्तो ताज की ख़्वाहिश रही,
और "इशरत " दार भी पकड़े रहे।।
- इशरत शाहजहाँपुरी
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