Mukesh alam - hirdu kavyashala

मशहूर शायर और बॉलीवुड गीतकार मुकेश आलम साहब

ग़ज़ल:
सामने मेरे है दुनिया ज्यों समंदर रेत का।
और सब की ज़िंदगी जैसे बवंडर रेत का।।
रेत की दीवार के साए में बैठा आदमी,
और साए पर भरोसा दिल के अंदर रेत का।।
रेत के महलों में रहते कारोबारी रेत के,
जीत कर दुनिया रहेगा हर सिकंदर रेत का।।
नीव जाती है खिसकती क्या करेगा रब यहाँ,
दीन-ओ-मज़हब रेत के हैं और मंदर रेत का।।
कहने वाला एक 'आलम' रेत के नग़्मे कहे,
सुनने वाला ये ज़माना जैसे मंज़र रेत का।।
- मुकेश आलम

आप भी अपनी रचनाएँ हमें भेज सकते हैं...
ई-मेल : hirdukavyashala555@gmail.com

हिर्दू फाउंडेशन से जुड़ें:
: वेबसाइट : इंस्टाग्राम : फेसबुक :

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
शिवम् शर्मा गुमनाम (संस्थापक एवं सचिव)
रश्मि द्विवेदी (अध्यक्षा)
संतोष शाह (संस्थापक सदस्य)
संपर्क सूत्र: 7080786182, 9889697675

Comments

Popular posts from this blog

lakho sadme dhero gham by azm shakiri

Bahut khoobsurat ho tum by tahir faraz at hirdu

Agnivesh shukla at hirdu kavyashala