Mukesh alam - hirdu kavyashala
मशहूर शायर और बॉलीवुड गीतकार मुकेश आलम साहब
ग़ज़ल:
सामने मेरे है दुनिया ज्यों समंदर रेत का।
और सब की ज़िंदगी जैसे बवंडर रेत का।।
रेत की दीवार के साए में बैठा आदमी,
और साए पर भरोसा दिल के अंदर रेत का।।
रेत के महलों में रहते कारोबारी रेत के,
जीत कर दुनिया रहेगा हर सिकंदर रेत का।।
नीव जाती है खिसकती क्या करेगा रब यहाँ,
दीन-ओ-मज़हब रेत के हैं और मंदर रेत का।।
कहने वाला एक 'आलम' रेत के नग़्मे कहे,
सुनने वाला ये ज़माना जैसे मंज़र रेत का।।
- मुकेश आलम
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