Papau naak lihis katvaaye

डॉ. कमलेश द्विवेदी (सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्यकार/कवि/गीतकार)

हास्य-व्यंग्य-
कुंठित कानपुरी और ख़फ़ा ख़ैराबादी

कल अपने ही शहर की एक कवि गोष्ठी में
एक सज्जन ने 
मैराथन मुशायरे की बधाई देते हुए 
मुझसे हाथ मिलाया
मैंने कहा-जी, धन्यवाद
पर मैं आपको पहचान नहीं पाया
वे बोले-मैं कवि कुंठित कानपुरी
मैंने कहा-अरे,आप तो अपने ही शहर के हैं
पर आज तक आपसे मुलाकात नहीं हुई
वे बोले-कमलेश जी 
मैं बाहर इतना आता-जाता हूँ 
कि शहर के आयोजनों के लिए 
समय ही नहीं निकाल पाता हूँ
कुंठित जी के साथ ही
एक और सज्जन खड़े थे
जो उम्र में उनसे कुछ बड़े थे 
मैंने पूछा-हुज़ूर,आपका परिचय 
वे बोले-नाचीज़ को लोग
उस्ताद शायर ख़फ़ा ख़ैराबादी कहते हैं
मैंने पूछा-अाप ख़ैराबाद में रहते हैं
वे बोले नहीं-हम भी कानपुर में ही रहते हैं
पर हमारा ताल्लुक ख़ैराबाद से है
ऐसा अब्बाजान बताते हैं
इसलिए हम अपने नाम के साथ
ख़ैराबादी लगाते हैं
मैंने कहा-लेकिन उस्तादे-मोहतरम
कानपुर के कार्यक्रमों में तो 
आप भी नज़र नहीं आते हैं
वे बोले-इसकी एक ख़ास वज़ह है-
हम मेयारी पिरोगिराम ही पढ़ते हैं
इसीलिए कई लोगों की निगाहों में 
बहुत गड़ते हैं
मैंने कहा-फिर तो आपको 
मैराथन में भी जाना चाहिए था
आयोजकों द्वारा आपके पास भी 
बुलावा आना चाहिए था
वे बोले-नहीं-नहीं
बुलावा तो हम दोनों के पास भी आया था
हमें तो कनवीनर ने पिलेन से बुलाया था
फिर हम किसी को कुसूरवार क्यों ठहरायें
जब मेयारी पिरोगिराम 
मुहल्ले में ही मिल जायें
तो हम मैराथन तक दौड़ क्यों लगायें...

आल्हा: पपुआ नाक लिहिस कटवाय
पहिले पपुआ लड़िस लड़ाई, फिर ऊ दीन्हेस शीश झुकाय...
बोला हमका संस्कार सब, बीजेपी है दिहिस सिखाय...

का हिन्दू हैं, का हैं शिवजी, हमका सब कुछ दिहिस बताय...
एहिके ख़ातिर आभारी हन, कह पहुँचा मोदी तक धाय...

मोदी जी से कहिस उठौ, अब तुमका लेई गले लगाय.
इतनी जल्दी यौ का हुइगा, मोदी जी कुछ समझ न पाय...

नहीं उठे तो उनकी गरदन, मा ऊ गरदन दिहिस फँसाय...
फिर वापस चल दीन्हेस झटपट, तौ मोदी जी लिहिन बुलाय...

हाथ मिला के पीठ ठोंक के, काने मा यो दिहिन बताय.
बस चुनाव तक धीर धरौ तुम, फिर हम शादी देब कराय...

खुश होइ लौटा ऊ कुर्सी पर, लेकिन खुशी सही न जाय...
बैठत ही कुर्सी पर आपन, बायीं आँखी दिहिस दबाय...

देश और दुनिया सब देखिस, अब आपस मा रही बताय...
देखौ-देखौ आजौ पपुआ, आपन नाक दिहिस कटवाय...

यौ आल्हा "कमलेश द्विवेदी", लिखिके सबका दिहिन सुनाय...
नीक लाग होये तौ भइया, सब जन तारी देव बजाय...
- डॉ कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674

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