Us shahar ke sooraj ka kaise fir geeto me abhinandan ho

सुप्रसिद्ध कवि/गीतकार बनज कुमार "बनज"

:: गीत ::
जिस शहर की धूप उदास लगे
और छाया तक में क्रंदन हो...
उस शहर के सूरज का कैसे
फिर गीतों में अभिनन्दन हो...

हर मोड़ पे तख्ती टंगी हुई है,
जाने कितने प्यासों की।
गिनती बढती है रोजाना,
अब फटी पुरानी साँसों की।।

चन्दन की जगह बबूलों का
जब मंदिर तक में वंदन हो...
उस शहर के...

आवाजें आती रहती है,
फूलों की काया छिलने की।
कलियों को लेनी पड़ती है,
हर रोज़ इज़ाज़त खिलने की।।

एक फूल फूल से डरे जहाँ
और शूलों में गठबंधन हो...
उस शहर के...

डसने की क्षमता रोज़ाना,
विष पीने वाले बढ़ा रहे।
जीवन क़े खातिर बेचारे,
सब लोग चढ़ावा चढ़ा रहे।।

मंथन हो सागर का लेकिन
असुरों क़े हाथ प्रबंधन हो...
उस शहर के...

जब भी देखों तो मिलते हैं,
फुटपाथों क़े चेहरे ठहरे।
जो बोने हैं वो गूंगे हैं,
जो लम्बे हैं वो बहरे।।

रावण रूपी शैतानों का
जब नामकरण रघुनन्दन हो...
उस शहर के...

:: ग़ज़ल (1) ::
साथ मेरे जिस्म के साया मेरा रहता नहीं,
मैं समंदर हूँ मगर पानी मुझे सहता नहीं।
ढूंढती है क्या भला मुझमें उतर कर धूप अब,
हो गए सालों यहां पर अब कोई रहता नहीं।
बात जो पहलू बदल के कर चुका हूँ आपसे,
मैं वो बातें इस ज़माने से कभी कहता नहीं।
हादसा ऐसा हुआ मैं ख़ाक होकर रह गया,
बाद उसके मैं किसी की आग में दहता नहीं।
क़ातिलों को हो रहा है देखकर  अचरज़ बहुत ,
काटते हैं जब मुझे तो खून क्यों बहता नहीं।
इक ज़रा सी ठेस लगते ही बिखर जाता था जो,
वो बनज अब ज़लज़लों में भी यहाँ ढहता नहीं।

:: ग़ज़ल (2) ::
अपने गाल बजाना सीख।
मंचों को हथियाना सीख।।
छोड़ ज़मीरी की बातें,
बिकना और बिकाना सीख।
नहीं ज़रूरत कविता की,
केवल बात बनाना सीख।
कुछ कवियों के जूतों को,
आदर सहित उठाना सीख।
हत्या करके लफ़्ज़ों की,
रोज़ इन्हें दफ़नाना सीख।
सभी तरफ खुशहाली है,
ऐसा गीत सुनाना सीख।
वीणा पाणी के सिर पर,
लक्ष्मी को बैठाना सीख।
बनज अदीबों का घेरा,
तोड़ के बाहर आना सीख।
- बनज कुमार बनज

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