Ansar Qumbari at hirdu kavyashala

ग़ज़ल: अब यही ज़िंदगी है तो हम क्या करें...
अपने दामन को अब और नम क्या करें।।
छोड़िये बीती बातों का ग़म क्या करें।।
इसलिए हमने उनका यकीं कर लिया,
खा रहे थे क़सम पर क़सम क्या करें।।
ये तो सूरज को भी सोचना चाहिये,
धूप से जल रहे हैं क़दम क्या करें।।
मौत आगे भी है, मौत पीछे भी है,
अब यही ज़िन्दगी है तो हम क्या करें।।
हम भी बाज़ार में आ गये ‘क़म्बरी’,
अपनी क़ीमत को अब और कम क्या करें।।

ग़ज़ल: मुझपे वो मेहरबान है शायद...
मुझपे वो मेहरबान है शायद।
फिर मेरा इम्तहान है शायद।।
उसकी  ख़ामोशियां ये कहती  हैं,
उसके दिल में ज़बान है शायद।
मुझसे मिलता नहीं है वो खुल कर,
कुछ न कुछ दरमियान है शायद।।
उसके  जज़्बों की कीमतें तय हैं,
उसका दिल भी  दुकान  है शायद।।
मेरे दिल में सुकून पाएगा,
दर्द को इत्मिनान है शायद।।
फिर हथेली पे रच गई मेंहदी,
फिर हथेली पे जान है शायद।।
बात सीधी है और गहरी है,
'क़म्बरी' का बयान है शायद।।

ग़ज़ल: कहीं नीयत में ख़ामी आ न जाए...
जबां पर बद-क़लामी आ न जाए।
कहीं नीयत में ख़ामी आ न जाए।।
हमारे दिल को तुम छेड़ो न ऐसे,
समन्दर में सुनामी आ न जाए।।
ये कह दो चाँद से छत पर न निकले,
सितारों की सलामी आ न जाए।।
बड़ी जल्दी है दिल को फ़ैसले की,
नतीजा दूरगामी आ न जाए।।
यहां बाहर से ताजिर आ रहे हैं,
कहीं फिर से गुलामी आ न जाए।।
कोई रावण हमारे राम दल में,
पहन कर रामनामी आ न जाए।।
यही उलझन है संयोजक को शायद,
कोई शायर मुकामी आ न जाए।।

ग़ज़ल: आप से भी वही फ़ासला हो गया...
एक तरफ़ा वहाँ फ़ैसला हो गया।
मैं बुरा हो गया, वो भला हो गया।।
चाहते ही रहे हम जिसे उम्रभर,
आज उसको भी हमसे गिला हो गया।।
चाँद मेरी पँहुच से बहुत दूर था।।
आप से भी वही फ़ासला हो गया।।
जिस तरफ़ देखिये प्यास ही प्यास है,
क्या हमारा शहर कर्बला हो गया।।
एक साया मेरे साथ था ‘क़म्बरी’,
यूँ लगा जैसे मैं क़ाफ़िला हो गया।।

ग़ज़ल: प्यारी ग़ज़ल...
हो तुम्हारी ग़ज़ल या हमारी ग़ज़ल।
हर किसी को लगे आज प्यारी ग़ज़ल।।
वो भी बेचैन रहती है मेरे लिये,
जानती है मेरी बेकरारी ग़ज़ल।।
ख़ुद-ब-ख़ुद उसकी तस्वीर बनती गयी,
हमने काग़ज़ पे जब भी उतारी ग़ज़ल।।
देश की, धर्म की, बिगड़े हालात की,  
दे रही है सही जानकारी ग़ज़ल।।
जब ख़यालों को अपनी ज़मीं मिल गयी,
आसमानों से हमने उतारी ग़ज़ल।।
इस क़दर इसका जादू चढ़ा 'क़म्बरी',
कह रहे हैं सभी बारी-बारी ग़ज़ल।।
- अंसार क़म्बरी

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