Aslem Rashid at hirdu kavyashala
ग़ज़ल: बड़ा ख़सारा हुआ...
उसको छूकर बड़ा ख़सारा हुआ।
लौट आया मैं ख़ुद में हारा हुआ।।
ख़ाक में मिल के लोग ख़ाक हुऐ,
ख़ाक को मल के मैं सितारा हुआ।।
उसके होकर भी कब हुए उसके,
जिस्म पहने रहे उतारा हुआ।।
अब वो लम्हा नहीं गुज़रता है,
जो है सौ बार का गुज़ारा हुआ।।
खो दिया था जिसे सदाओं ने,
आ गया आज, वो पुकारा हुआ।।
दुःख से ज़्यादा उसे हुई वहशत,
रख दिया मैंने सर उतारा हुआ।।
जिस से भी उसने फेर लीं नज़रें,
वो मेरे ग़म का इस्तियारा हुआ।
और फिर पहले इश्क़ की ख़ातिर,
आख़री बार इस्तिख़ारा हुआ।।
- असलम राशिद
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