Azm shakiri at hirdu kavyashala
ग़ज़ल: ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के बाद...
ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के बाद।
आप आए तो मगर तूफ़ाँ गुज़र जाने के बाद।।
चाँद का दुख बाँटने निकले हैं अब अहल-ए-वफ़ा,
रौशनी का सारा शीराज़ा बिखर जाने के बाद।।
होश क्या आया मुसलसल जल रहा हूँ हिज्र में,
इक सुनहरी रात का नश्शा उतर जाने के बाद।।
ज़ख़्म जो तुम ने दिया वो इस लिए रक्खा हरा,
ज़िंदगी में क्या बचेगा ज़ख़्म भर जाने के बाद।।
शाम होते ही चराग़ों से तुम्हारी गुफ़्तुगू,
हम बहुत मसरूफ़ हो जाते हैं घर जाने के बाद।।
ज़िंदगी के नाम पर हम उमर भर जीते रहे,
ज़िंदगी को हम ने पाया भी तो मर जाने के बाद।।
ग़ज़ल: दिल में हसरत कोई बची ही नहीं...
दिल में हसरत कोई बची ही नहीं।
आग ऐसी लगी बुझी ही नहीं।।
उस ने जब ख़ुद को बे-नक़ाब किया,
फिर किसी की नज़र उठी ही नहीं।।
जैसा इस बार खुल के रोए हम,
ऐसी बारिश कभी हुई ही नहीं।।
ज़िंदगी को गले लगाते क्या,
ज़िंदगी उम्र-भर मिली ही नहीं।।
मुंतज़िर कब से चाँद छत पर है,
कोई खिड़की अभी खुली ही नहीं।।
मैं जिसे अपनी ज़िंदगी समझा,
सच तो ये है वो मेरी थी ही नहीं।।
- अज़्म शाकिरी
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