gaurav trivedi at hirdu kavyashala
ग़ज़ल: रूह का क्या होता है???
जिस्म मरता है तो फिर रूह का क्या होता है।
मौत ही सच है तो फिर मुझको बता सच क्या है।।
वो मुझे छोड़ के दुनिया का हुआ जाता है।
जिसको मैने ही सिखाया था मुहब्बत क्या है।।
मेरी ग़ज़लों को इकट्ठा तो करो फिर देखो।
कैसे अशआर की सूरत में ढला चेहरा है।।
पहले सुख - दुख कई महसूस हुआ करते थे।
मुझपे अब जो भी गुज़रता है गुज़र जाता है।।
प्यार कर पाऊँ मैं अब ऐसा नहीं हो पाउँगा।
चाहता तो हूँ मगर तेरा नहीं हो पाउँगा।।
ग़ज़ल: अब मैं ख़ुद भी चाहूँ तो वैसा नहीं हो पाउँगा...
मुझसा दुनिया में तलाशे फिर रही हो तो सुनो।
अब मैं ख़ुद भी चाहूँ तो वैसा नहीं हो पाउँगा।।
कूज़ागर मुझको बनाते वक्त इतना ध्यान रख।
मैं बिना मेहबूब के पूरा नहीं हो पाउँगा।।
बाद माँ के भी मैं प्यारा तो हूँ लाखों का मगर।
अब किसी की आँख का तारा नही हो पाउँगा।।
उसने जब छोड़ा था मेरी उम्र थी इक्किस बरस।
तबसे इक्किस का ही हूँ बुड्ढा नही हो पाउँगा।।
जिस्म मरता है तो फिर रूह का क्या होता है।
मौत ही सच है तो फिर मुझको बता सच क्या है।।
वो मुझे छोड़ के दुनिया का हुआ जाता है।
जिसको मैने ही सिखाया था मुहब्बत क्या है।।
मेरी ग़ज़लों को इकट्ठा तो करो फिर देखो।
कैसे अशआर की सूरत में ढला चेहरा है।।
पहले सुख - दुख कई महसूस हुआ करते थे।
मुझपे अब जो भी गुज़रता है गुज़र जाता है।।
प्यार कर पाऊँ मैं अब ऐसा नहीं हो पाउँगा।
चाहता तो हूँ मगर तेरा नहीं हो पाउँगा।।
ग़ज़ल: अब मैं ख़ुद भी चाहूँ तो वैसा नहीं हो पाउँगा...
मुझसा दुनिया में तलाशे फिर रही हो तो सुनो।
अब मैं ख़ुद भी चाहूँ तो वैसा नहीं हो पाउँगा।।
कूज़ागर मुझको बनाते वक्त इतना ध्यान रख।
मैं बिना मेहबूब के पूरा नहीं हो पाउँगा।।
बाद माँ के भी मैं प्यारा तो हूँ लाखों का मगर।
अब किसी की आँख का तारा नही हो पाउँगा।।
उसने जब छोड़ा था मेरी उम्र थी इक्किस बरस।
तबसे इक्किस का ही हूँ बुड्ढा नही हो पाउँगा।।
- गौरव त्रिवेदी
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शिवम् शर्मा गुमनाम, संस्थापक एवं सचिव
रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा
वैभव पालीवाल, उपाध्यक्ष
संपर्क सूत्र: 7080786182, 9889697675
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