Krishna kumar naz at hirdu kavyashala

गीत: मैं तुम्हारा हूँ...
हो कठिन, चाहे सरल हो ज़िंदगानी का सफ़र।
मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा ही रहूंगा उम्रभर।।

अब विवशताएं न ज़ंजीरें बनेंगी पांव की।
अब न होगी रोशनी फीकी हृदय के गांव की।।
देखना, उल्लास का वातावरण होगा मुखर...

खुल गए देखो समर्पण के सजीले द्वार भी।
जगमगाते हैं उजालों की तरह अंधियार भी।।
सज गई है दूर तक सदभावनाओं की डगर...

प्रार्थना को प्रेम का आधार भी करते चलें।
कामनाओं का चलो श्रृंगार भी करते चलें।।
खूबसूरत है हमारी कल्पनाओं का नगर...

गीत: मन के चंदनवन में...
मेरे मन के चंदनवन में, जो धूप सुनहरी आती है।
वह धूप तुम्हारे चेहरे की आभा से शरमा जाती है।।

कुछ तो मौसम अनुकूल हुआ,
कुछ समय निकाला तुमने भी।
कुछ ज्योति बिखेरी दीपक ने,
कुछ किया उजाला तुमने भी।।
आभास तुम्हारा होता है, जब कोयल गीत सुनाती है...

आह्लादित करता है पल-पल,
वह विपुल प्यार, वह क्षणिक मिलन।
दे गई सुगंधे कितनी ही,
वह एक तुम्हारी मधुर छुअन।।
लो धन्य हुआ जीवन अपना हर सांस यही दोहराती है...

जीवन कुछ ऐसा लगता था,
मानो अभिशप्त हवेली हो।
नर्तन हो गहन निराशा का,
पीड़ाओं की अठखेली हो।।
लेकिन तुमको पाकर जाना, हर दिशा आज मुस्काती है...
- डॉ. कृष्ण कुमार ‘नाज़’

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