Shakeel aazmi at hirdu kavyashala

ग़ज़ल: शक़ील आज़मी
बात से बात की गहराई चली जाती है।
झूठ आ जाए तो सच्चाई चली जाती है।।
रात भर जागते रहने का अमल ठीक नहीं,
चाँद के इश्क़ में बीनाई चली जाती है।।
मैं ने इस शहर को देखा भी नहीं जी भर के,
और तबीअत है कि घबराई चली जाती है।।
कुछ दिनों के लिए मंज़र से अगर हट जाओ,
ज़िंदगी भर की शनासाई चली जाती है।।
प्यार के गीत हवाओं में सुने जाते हैं,
दफ़ बजाती हुई रूस्वाई चली जाती है।।
छप से गिरती है कोई चीज़ रूके पानी में,
दूर तक फटती हुई काई चली जाती है।।
मस्त करती है मुझे अपने लहू की ख़ुशबू,
ज़ख़्म सब खोल के पुरवाई चली जाती है।।
दर ओ दीवार पे चेहरे से उभर आते हैं,
जिस्म बनती हुई तन्हाई चली जाती है।।
- शक़ील आज़मी

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