Shameem abbas at hirdu kavyashala
ग़ज़ल: सोचा है यूँ सज़ा देंगे...
उसे न मिलने की सोचा है यूँ सज़ा देंगे।
हर एक जिस्म पे चेहरा वही लगा देंगे।।
हमारे शहर में शक्लें हैं बे-शुमार मगर,
तिरे ही नाम से हर एक को सदा देंगे।।
हम आफ़्ताब को ठंडा न कर सके ऐ ज़मीं,
अब अपने साए की चादर तुझे ओढ़ा देंगे।।
भुलाए बैठे हैं जिस को हम एक मुद्दत से,
गर उस ने पुछ लिया तो जवाब क्या देंगे।।
बदन समेत अगर वो कभी जो आ जाए,
बदन को उस के बदन अपना बा-ख़ुदा देंगे।।
ग़ज़ल: तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं...
तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं।
जाओ तुम आदमी की ज़ात नहीं।।
दिल में जो है वही ज़बान पे है,
और कोई हम में ख़ास बात नहीं।।
सब को धुत्कारा दरकिनार किया,
एक बस ख़ुद ही से नजात नहीं।।
खुल के मिलते हैं जिस से मिलते हैं,
ज़ेहन में कोई छूत-छात नहीं।।
इक तअ'ल्लुक़ सभी से है लेकिन,
सब से जाएज़ तअ'ल्लुक़ात नहीं।।
शाइ'री है ये शाइ'री साहब,
ये शरीफ़ों के बस की बात नहीं।।
- शमीम अब्बास
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