Gumnam and ishrat

:ग़ज़ल: :इशरत शाहजहाँपुरी:
साँस की रफ़्तार भी पकड़े रहे।
हम दिले बीमार भी पकड़े रहे।।
रक़्स भी करते रहे बाज़ार में,
दामन-ए-किरदार भी पकड़े रहे।।
आसमानों पर नज़र अपनी रही,
हाथ से दस्तार भी पकड़े रहे।।
मुन्हदिम करते रहे दिल का दयार,
और इक दीवार भी पकड़े रहे।।
बोलने की भी इजाज़त दी गयी,
वो लब-ए-इज़हार भी पकड़े रहे।।
दिल में इशरत तख़्त की ख़्वाहिश लिए,
हम सलीबो दार भी पकड़े रहे।।
- इशरत शाहजहाँपुरी, मशहूर शायर
(सदस्य, संरक्षक मण्डल, हिर्दू फाउंडेशन)

:ग़ज़ल: :शिवम शर्मा गुमनाम:
जब अपने तलवार पकड़ के बैठ गए।
हम अपनी दस्तार पकड़ के बैठ गए।।
कैसे वो मनचाही मंज़िल पाएंगे,
जो अपनी रफ़्तार पकड़ के बैठ गए।।
कसदन भी वो हमको छोड़ नहीं सकते,
जो हमको इक बार पकड़ के बैठ गए।।
पहले भी तो रूठा-रूठी चलती थी,
तुम भी क्या इस बार पकड़ के बैठ गए।।
घर का झगड़ा आया जो बंटवारे पर,
बाबू जी दीवार पकड़ के बैठ गए।।
हम को कहानी वैसी दिखने लगती है,
हम जैसा क़िरदार पकड़ के बैठ गए।।
- शिवम शर्मा गुमनाम
(संस्थापक एवं सचिव, हिर्दू फाउंडेशन)

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