Ishrat shahjahanpuri
:ग़ज़ल: इशरत शाहजहाँपुरी:
रंग चेहरे पर जो उभरा था वो गहराने लगा।
आप को मतलब मुहब्बत का समझ आने लगा।।
नाम जिसका पत्थरों पर लिख के तैराया गया,
आज उसके नाम से इंसान घबराने लगा।।
अपने अंदर के छिपे शैताँ से लड़ना था जिहाद,
तू मुजाहिद था तो सब पर ज़ुल्म क्यूँ ढाने लगा।।
रेत पर बस पैर थे जो शाम तक चलते रहे,
दिल तो तेरी याद के साये में सुस्ताने लगा।।
और!तेरे चाहने वालों की यह बस्ती नहीं,
अब यहाँ से दूर जा के दिल को दीवाने लगा।।
आप की इस बेरूख़ी पर भी वहीं बैठा था मैं,
एक साया,मेरे पहलू से उठा,जाने लगा।।
अब दुआओं की ज़ुरूरत है इसे ऐ बाग़बाँ,
उफ़!बहारों में चमन का फूल मुरझाने लगा।।
- इशरत शाहजहाँपुरी
(मशहूर ग़ज़लगो, शाहजहाँपुर)
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Waaaahh sir...Bahut pyaari ghazal hai
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