John elia
:ग़ज़ल: जॉन एलिया
उसके पहलू से लग के चलते हैं।
हम कहाँ टालने से टलते हैं।।
मैं उसी तरह तो बहलता हूँ यारों
और जिस तरह बहलते हैं।।
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में,
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं।।
है अजब फ़ैसले का सहरा भी,
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं।।
हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद,
देखने वाले हाथ मलते हैं।।
तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू,
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं।।
- जॉन एलिया
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मैं उसी तरह तो बहलता हूँ,
ReplyDeleteऔर सब जिस तरह बहलते हैं।