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Showing posts from July, 2018

Ekadashi tripathi at hirdu kavyashala

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आज आप के बीच हैं युवा कवयित्री कु. एकादशी त्रिपाठी जी... आज पढ़ते हैं एकादशी जी की एक बेहद मार्मिक कविता "हाँ! मैं कोठे वाली हूँ"... हर सिक्के के दो पहलूँ होते हैं... आज हम समझने की कोशिश करते हैं नारी के इस रूप को भी... जिसे समाज कभी अच्छी निगाहों से नहीं देखता... एकादशी त्रिपाठी हाँ! मैं कोठे वाली हूँ... अरे हाँ! मैं कोठे वाली हूँ... दिन-रात खुद का जिस्म बेचकर बेबाप औलादों को पालने वाली हूँ... नाजायज हूं दुनिया के लिए हराम के बच्चों वाली कहलाती है हाँ! मैं कोठे वाली हूँ... अपने होठों को मांस सा रंगाती हूँ आँखों में बेशर्मी भर सुरमा मैं लगाती हूँ हर रात रईसों के खातिर बिस्तर मैं सजाती हूँ सुबह तक रईसों का एक एक रुपया चुकता कराती हूँ पहले कोठे वाली नहीं थी पर हां अब कोठेवाली कहलाती हूँ सात अाठ वर्ष की कुल थी मैं उसका कातिल रात का जाना पहचाना चेहरा मुझसे कुछ भी लिपट रहा था मासूम थी ...नादान थी... बलात्कार हो रहा है मेरा इस सच से अनजान थी चीख रही थी ...चिल्ला रही थी ... दुनिया सारी तमाशाबीन बन मजाक उड़ा रही थी बोटी बोटी नोच रहा था सीना मेरा खोज रहा था...

Hema anjuli at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं मायानगरी की उस सुविख्यात कवयित्री से जिसने न सिर्फ़ कविता बल्कि अभिनय के क्षेत्र में भी काफी यश अर्जित किया... हम बात कर रहें हैं देश की जानी मानी कवयित्री, बॉलीवुड/टी.वी. अभिनेत्री, मॉडल हेमा अंजुलि जी की... हेमा जी द्वारा की गईं कुछ फ़िल्में- 26/11, नागरिक, राम सिंह चार्ली, सचिन - अ बिलियन ड्रीम्स कुछ टी.वी. सीरियल - हम हैं न, क़िस्मत कनेक्शन, सी. आई. डी., उतरन, ससुराल सिमर का, दिया और बाती हम, इस प्यार को क्या नाम दूं, अफ़सर बिटिया, गुमराह, भागों वाली... कैडबरी, आई. पी. एल. और भी कई विज्ञापनों के ज़रिये टी. वी. की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखती हैं हेमा अंजुलि साहिबा... हेमा चंदानी अंजुलि कविता -लड़कियाँ सच में... दुनिया को बहुत हैरान करती हैं लड़कियाँ एक तो बिना बताये कोख में आ जाती हैं फिर चाहे लाख मारने की कोशिश करो फिर भी बच जातीं हैं लड़कियाँ... ठीक से खाने को ना दो फिर भी देह बढ़ती ही जाती है फटे पुराने कैसे भी कपड़े पहनाओ फिर भी सुन्दर दिखती हैं लड़कियाँ... गरीबों की तरह पढाओ फिर भी मेरिट में आ जातीं हैं लड़कियाँ लाख परायी कह दो फिर भी अपनापन दि...

Arvind mishra at hirdu kavyashala

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आज आपके बीच हैं शहीदनगरी शाहजहांपुर से लोकप्रिय व्यंग्यकार एवं गीतकार स्व. अरविंद मिश्र... बेबाक़ ज़बान... बेख़ौफ़ अंदाज़... मिश्र जी की यही शैली उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग करती है... आज हम पढ़ते हैं स्मृतिशेष अरविंद जी के बहुचर्चित दो गीत... और नमन प्रेषित करते हैं उन्हें... (विनम्र श्रद्धांजलि) स्व. अरविंद मिश्र गीत - 1 नहीँ पराजित हुआ युद्ध से, समझोतों से हारा हूँ। यह मत कहना लोगो मुझसे, मैं कितना बेचारा हूँ।। श्रद्धा से झोली में हमने, बहुत सहेजा विश्वासों को। नहीं व्यक्त कर पाया हूँ, जीवन भर  एहसासों कों।। नहीं बेचता  स्वाभिमान मैं, गलियों में, बाजारों में... यह मत कहना लोगो मुझसे, मैं कितना नाकारा हूँ। नहीँ पराजित हुआ युद्ध से, समझोतों से हारा हूँ।। अपने अपने द्रष्टिकोण है, है अपनी अपनी सीमाएं। नहीँ ज़रूरी अपनी पीड़ा, का रहस्य भी समझाएं।। हर घर में घर की तलाश है, सड़क नापना मजबूरी... यह मत कहना लोगो मुझसे, मैं कितना आवारा हूँ। नहीँ पराजित हुआ युद्ध से, समझोतों से हारा हूँ।। गीत - 2 मौसम क्या बदला गीतों के तेवर बदल गए... चली बयार जरा से पछुआ जे...

Anand tanha at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं कानपुर के सुप्रसिद्ध शायर आंनद तन्हा साहब से और लुत्फ़ लेते हैं उनकी एक बहुचर्चित ग़ज़ल "शायद" का... आनंद तन्हा ग़ज़ल: बात  मेरी  नहीं  बनी  शायद। रह गयी है कहीं कमी शायद। इश्क़ जिसको समझ लिया हमने, आपकी   थी  वो  दोस्ती  शायद। आरिज़ो पर चमक रहे अब भी, अश्क  उसके हैं शबनमी शायद। दब गयी है किसी की रग दुखती, आपने  की  है  दिल्लगी  शायद। अक़्स कहने लगा है अब मुझसे, तुम को देखा है अजनबी शायद। है  सबब  रोशनी का महफ़िल में, उसकी  तशरीफ़  आवरी शायद। हर जगह शमआ हम जलायेंगे, तंग  आ जाये  तीरगी   शायद। सिर्फ़ हम आपसे ही कह सकते, देखिये  नब्ज़  चल  रही  शायद। कर रहा  है  तहस-नहस दुनिया, अब नहीं यह वो आदमी शायद। - आनंद तन्हा हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें: शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक संतोष शाह, सह-संस्थापक रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा संपर्क सूत्र- 7080786182, 8299565686, 8896914889 ई-मेल- hirdukavyashala55...

Suresh gupt rajhans at hirdu kavyashala

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आप आपको मिलवाते हैं साहित्यनगरी कानपुर के सुप्रसिद्ध कवि सुरेश गुप्त राजहंस जी से... गीत, ग़ज़ल, दोहे एवं छंद लगभग सभी विधाओं में आप कुशल हैं... कवि होने के साथ - साथ राजहंस जी तरंग साहित्यिक संस्था के संयोजक भी हैं ... आपको बता दें तरंग ख़ास तौर से कविता की नयी पौध को सींचने का काम कर रही है... आइये आनंद लेते हैं राजहंस जी द्वारा रचित सरस्वती वंदना का... और माँ भगवती के चरणों में अपना नमन प्रेषित करते हैं... सुरेश गुप्त राजहंस वंदना: वंदना है माँ वरदान दो। शारदे सार दे के सुशोभित करो, सप्त सरगम सा स्वर ज्ञान दो ।। वंदना है माँ... अक्षरा अच्युता अम्ब आनंदिता  आसरा आपका आज आओ, कल्पना काव्यकृति का कलेवर करो, कर कृपा कोर करनी कराओ, सुचि सरलता से स्वरज्ञान दो। वंदना है माँ... मैं पथिक पंथ का पथ प्रदर्शक हो तुम, प्यार पोषित प्रखर प्रीति पाऊँ। मन के मन्दिर में ममतामयी को बिठा, मन की मनका ले माँ को मनाऊँ। मेरी विनती पे कुछ ध्यान दो। वंदना है माँ... लक्षणा व्यंजना शब्द सामर्थ्यता जानता ही नहीं जो मैं अर्पण करूँ, अर्चना वंदना तेरी अभ्यर्थना पास मेर...

Anuj Abra at hirdu kavyashala

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आज आपकी मुलाक़ात करवाते हैं एक बेहद अलग अंदाज़ के शायर जनाब अनुज अब्र साहब से... आप अपने लहजे की शायरी से अदब की ख़िदमत कर रहे हैं...पेश - ए - ख़िदमत है अब्र साहब की एक बेहद हसीन ग़ज़ल... अनुज अब्र इसी उसूल पे उसका निज़ाम चलता है। कि कांटा पांव का कांटे से ही निकलता है।। हम उस चराग को अपना लहू भी दे देंगे, वो जो ख़िलाफ़ अंधेरे के रोज जलता है।। जमीं तवाफ़ किये जा रही है इसका और, समझते हम हैं कि ये आफ़ताब चलता है।। मेरी ये बात हमेशा दिमाग में रखना, हज़ार वक्त बुरा हो मगर बदलता है।। ये कौन बात अकेले में करता है मुझ से, ये कौन छत पे मेरे साथ साथ चलता है।। गए हो आग लगा कर न जाने ये कैसी, कि दिल में आज तलक इक अलाव जलता है।। अनुज यकीन कभी उस पे तुम नहीं करना, हर एक बार जो अपना कहा बदलता है।। - अनुज अब्र हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें: शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक संतोष शाह, सह-संस्थापक रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा संपर्क सूत्र- 7080786182, 8299565686, 8896914889 ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com ब्लॉगर- www.hirdukavyashala.blogspot.in

Shubham sarkar at hirdu kavyashala

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आज आपको मिलवाते हैं इलाहाबाद के नौजवान शायर शुभम सरकार से... एक अलग कहन सरकार की शायरी को ख़ास बनाती है... लुत्फ़ लेते हैं सरकार की एक ग़ज़ल का मगर उससे पहले कुछ फुटकर शेर... शुभम सरकार फुटकर शेर- यक़ीनन था नहीं काबिल तुम्हारे, तुम्हारी सोच से आगे का था मैं।। हवा औक़ात पे आ जाए अपनी, दिया ऐसी हिमाक़त क्यों करेगा।। इतना कैसे जी लेते हो, इतने में सब मर जाते हैं।। उन ज़ख़्मों का दर्द न पूँछों, जिनके हिस्से ज़िस्म न आया।। नहीं देते तवज़्ज़ो तुम मिरे जिस शेर को साहब, उसी को सुन के ये दुनिया मुझे सरकार कहती है।। ग़ज़ल- तुम्हारे बाद कुछ लिक्खे नहीं हैं, कई  दिन हो गये रोये नहीं  हैं।। उलझते तो तुम्हें हम पा ही लेते, मग़र हम इश्क़ में उलझे नहीं हैं।। बगीचा है महज़ ये ज़ख़्म का ही, दवाई  के  यहाँ  पौधे  नहीं  हैं।। बुरे  तो  हैं  नहीं  ये  जानते  हैं, तिरे नज़रो में पर अच्छे नहीं हैं।। उन्हीं का दिल तो बच्चों की तरह है, जो कहते हैं कि हम बच्चे नहीं हैं।। अगर रोते तो तुमको याद करते, मग़र अफ़सोस अब रोते नहीं हैं।। ...

Ishrat sagir at hirdu kavyashala

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आज आपका तआर्रुफ़ कराते हैं उर्दू अदब के एक बेहद बाकमाल शायर जनाब इशरत सग़ीर "इशरत" साहब से... इशरत जी पेशे से बेसिक शिक्षा विभाग में बतौर असिस्टेंट टीचर अपनी ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं... इसके अलावा इशरत जी ने फ़ारसी की कई किताबों का हिंदी अनुवाद भी किया है...हाल ही में एक किताब "किताब-ए-ईरान (नील कमल प्रकाशन)" भी प्रकाशित हुई है...आइए लुत्फ़ लेते हैं गंगा-जमनी तहजीब के बेहद मोतबर शायर इशरत सग़ीर "इशरत" की शायरी का... पेश-ए-ख़िदमत है सग़ीर साहब की एक बेहद ख़ूबसूरत नज़्म... मगर उससे पहले चंद अ'शआर एक ग़ज़ल से... इशरत सग़ीर "इशरत" ग़ज़ल- अब नहीं शिकवा करेंगें हम कभी तक़दीर से। काम जब चलने लगे हों अक़्ल से तदबीर से।। छोड़िये हज़रत तमाशे वो ज़माने लद गये, जब डरा करते थे बच्चे शेर की तस्वीर से।। उसकी बातें दिल की तस्कीं का सबब होती रहीं, दर्द को आराम आया बर्फ़ की तासीर से।। क़ैद में रह कर न आई हम को कुछ अक़्लो ख़िरद, क्यों शिकायत कर रहे हैं पाँव की ज़ंजीर से।। शायरी में अपनी इशरत क्यों न हो सोज़ो गुदाज़, इक तअल्लुक़ जुड़ गया है अब जनाबे मीर से...

sumitra nandan pant at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं छायावाद युग के स्तंभ कवि सुमित्रानंदन पंत जी से... पंत जी को चिदंबरा रचना के लिए ज्ञान पीठ पुरुस्कार, कला और बूढ़ा चाँद के लिए साहित्य अकादमी पुरुस्कार एवं अन्य कई सम्मानित किया गया...पंत जी की कुछ प्रमुख काव्यकृतियाँ युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण आदि हैं...आपके समक्ष है पंत जी की एक बहुचर्चित कविता... सुमित्रानंदन पंत कविता – नव वसंत की रूप राशि का ऋतु उत्सव यह उपवन , सोच रहा हूँ , जन जग से क्या सचमुच लगता शोभन! या यह केवल प्रतिक्रिया , जो वर्गों के संस्कृत जन मन में जागृत करते , कुसुमित अंग , कंटकावृत मन! रंग रंग के खिले फ़्लॉक्स , वरवीना , छपे डियांथस , नत दृग ऐटिह्रिनम , तितली सी पेंज़ी , पॉपी सालस ; हँसमुख कैंडीटफ्ट , रेशमी चटकीले नैशटरशम , खिली स्वीट पी ,- - एवंडंस , फ़िल वास्केट औ ’ ब्लू बैंटम ! दुहरे कार्नेशंस , स्वीट सुलतान सहज रोमांचित , ऊँचे हाली हॉक , लार्कस्पर पुष्प स्तंभ से शोभित ! फूले बहु मख़मली , रेशमी , मृदुल गुलाबों के दल , धवल मिसेज एंड्रू कार्नेगी , ब्रिटिश क्वीन हिम उज्वल ! जोसेफ़ हिल , सनबर्स्ट पीत , स्वर्णिम लेडी हेलिंडन ,...

Aslem rashid at hirdu kavyashala

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आज रू-ब-रू होते हैं उर्दू अदब के बाकमाल शायर जनाब असलम राशिद साहब से... गुना, मध्यप्रदेश से ताअल्लुक़ रखने वाले असलम राशिद साहब मशहूर शायर तो हैं ही इसके अलावा राशिद साहब की बॉलीवुड लिरिसिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, फ़िल्म मेकर एवं फोटोग्राफर के रूप में अपनी एक अलग पहचान है...अपने ख़ास लहजे की शायरी से राशिद साहब शायरी-पसंद लोगों के दिलों में एक ख़ास जगह रखते हैं... आइए लुत्फ़ लेते हैं राशिद साहब की एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल का... असलम राशिद जब मिले बस उदास फूल मिले। हमको कब ख़ुश-लिबास फूल मिले।। उसकी आँखों के रंग जैसे हैं, आज तोहफ़े में ख़ास फूल मिले।। सबको पत्थर पे शक हुआ था मगर, ज़ख़्म के आसपास फूल मिले।। साथ खिलते थे साथ मुरझाये, हमको चहरा शनास फूल मिले।। मुझको ख़ुशबू यहीं से आती थी, उसकी आँखों के पास फूल मिले।। शाख़ से टूट कर उदास रहे, शाख़ पर कब उदास फूल मिले।। - असलम राशिद हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें: शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक संतोष शाह, सह-संस्थापक रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा संपर्क सूत्र- 7080786182, 8299565686, 8896914889 ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com वेबसाइट- ww...

Shabeena adeeb at hirdu kavyashala

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आज रू-ब-रू होते हैं उर्दू अदब की उस बाकमाल शायरा से जिसने अपनी शायरी के दम पर पूरी दुनिया का सफ़र किया... जी हाँ, हम बात कर रहे हैं कानपुर से ता'अल्लुक़ रखने वाली हिंदुस्तान की मशहूर शायरा मोहतरमा शबीना अदीब साहिबा की... एक अलग लहजा, एक अलग अंदाज़ शबीना साहिबा को शायरी पसंद लोगों के दिलों में एक ख़ास जगह देता है... आइए लुत्फ़ लेते हैं शबीना साहिबा की एक ग़ज़ल का मगर उससे पहले उनकी एक नज़्म... शबीना अदीब नज़्म- तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो। दिल दुखे जिससे अब ऐसी न कोई बात कहो।। रोज़ रोटी के लिए अपना वतन मत छोड़ो। जिसको सींचा है लहू से वो चमन मत छोड़ो।। जाके परदेस में चाहत को तरस जाओगे। ऐसी बेलौस मोहब्बत को तरस जाओगे।। फूल परदेस में चाहत का नहीं खिलता है। ईद के दिन भी गले कोई नहीं मिलता है।। तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो... मैं कभी तुमसे करूंगी न कोई फरमाइश। ऐश ओ आराम की जागेगी न दिल में ख्वाहिश।। फातिमा बीबी की बेटी हूँ भरोसा रखो। मैं तुम्हारे लिए जीती हूँ भरोसा रखो।। लाख दुःख दर्द हों हंस हंस के गुज़र कर लूंगी। पेट पर बाँध के पत्थर भी बसर कर लूंगी।। तु...