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Showing posts from June, 2018

Gyanendra mohan gyaan at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं सुप्रसिद्ध कवि एवं शायर ज्ञानेंद्र मोहन ज्ञान जी से... आप वर्तमान में आयुध निर्माणी नालंदा में वरिष्ठ हिंदी अनुवादक के रूप में कार्यरत हैं... आसान शब्दों में बड़ी - बड़ी बात कह सकने की ख़ूबी ज्ञान जी को रचनाकारों के बीच एक अलग पहचान देती है... पेश - ए - ख़िदमत हैं ज्ञान साहब की दो ग़ज़लें- ज्ञानेंद्र मोहन ज्ञान ग़ज़ल 1- मुझको हसीन ख़्वाब दिखाने का शुक्रिया। फिर उसके बाद मुझको भुलाने का शुक्रिया। मौक़ापरस्त जो भी थे सब खुलके आ गए, ऐ मुश्किलों! ये साथ निभाने का शुक्रिया। मुझको यक़ीन था कि निभा लेगा तू मुझे, मेरे भरम को तोड़ के जाने का शुक्रिया। थक हार के मैं बैठ चुका था वो आ गया, उम्मीद के चराग जलाने का शुक्रिया। वो 'ज्ञान' कह गया था दुबारा न आऊंगा, फिर से उसी का लौट के आने का शुक्रिया। ग़ज़ल 2- आपके चेहरे पे इतनी सिलवटें अच्छी नहीं। हर किसी से बेवजह की नफ़रतें अच्छी नहीं।। ठीक था कद नाप लेते दोस्त होने के लिए, दोस्ती में इस तरह की हरकतें अच्छी नहीं।। हौसले के साथ बढ़ कर जीत लेते ठीक था, मार कर टंगड़ी किसी को शोहरतें अच्छी नहीं।। सब गलत हैं, आप ही बस ठीक हैं, ...

Deepak awasthi at hirdu kavyashala

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आज रू-ब-रू होते हैं कम उम्र के उस बड़े शायर से... जिसकी कहन बड़े - बड़े शायरों को दाँतों तले उँगलियाँ दबाने पे मजबूर कर देती है... हम बात कर रहे हैं नबाबों के शहर लखनऊ से ता'अल्लुक़ रखने वाले नौजवान शायर दीपक अवस्थी जी की... शायरीबाज़ी का एक अलग अंदाज़ दीपक जी की शायरी को बेहद खास बना देता है...आइए लुत्फ़ लेते हैं दीपक भाई की एक ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल का... दीपक अवस्थी आटा, चावल, दाल लिखूंगा ग़ज़लों में। हर तबक़े  का हाल लिखूंगा ग़ज़लों में।। चौका-बासन, कपड़ा-लत्ता, सिलवट्टा, है ख़ाली जंगाल , लिखूंगा ग़ज़लों में।। गोलीबारी ,पत्थरबाजी, दंगे,ख़ून, ये किसकी है चाल, लिखूंगा ग़ज़लों में।। कर्ज़ा ,सूखा ,फाँसी का फंदा , फिर मौत अनचाही हड़ताल, लिखूंगा ग़ज़लों में।। झूठे दावे ,वादे ,मुद्दे ,सरकारी, फिर झूठी पड़ताल, लिखूंगा ग़ज़लों में।। जब भी दिल में प्यार उमड़ कर आएगा, मैं गोरी के गाल लिखूंगा ग़ज़लों में।। मुझको कोई ख़ौफ़ नहीं है मरने का, क्या कर लेगा काल, लिखूंगा ग़ज़लों में।। -दीपक अवस्थी विशेष: दूर अपने से किसी पल नहीं होने देता। वो मुझे आँख से ओझल नहीं होने देता।। जब वो लौटेगा सफ़र से मेरे घर आएग...

Kumar vijay at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं साहित्य नगरी कानपुर के बहुचर्चित शायर कुमार विजय साहब से... एक अलग लहज़ा, एक अलग कहन कुमार साहब को बाकी शायरों से अलग करती है...आइए लुत्फ़ लेते हैं कुमार साहब की एक ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल का... कुमार विजय उसने कर दिया ज़ाहिर क्या छुपा है सीने में। गर न हो मोहब्बत तो क्या मज़ा है जीने में।। होता है मोहब्बत का ख़ुशनुमा सा कुछ एहसास, सर्दियाँ बिखरती हैं जून के महीने में।। इश्क़ और मोहब्बत का कोई न हो पैमाना, छोड़ दो ये तय करना क्या लिखा सफ़ीने में।। मय से लाख बेहतर तो है नशा मोहब्बत का, कोई बतलाए मुझको क्या मज़ा है पीने में।। दिल की ये आराइश है देख लो नज़र भर के, कह रहा कुमार तुमसे क्या रखा नगीने में।। - कुमार विजय हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें: शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक संतोष शाह, सह-संस्थापक रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा संपर्क सूत्र- 8896914889, 8299565686, 7080786182 ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com ब्लॉगर- www.hirdukavyashala.blogspot.in

Farhat ehsas at hirdu kavyashala

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आज रू-ब-रू होते है उर्दू अदब के मशहूर - ओ - मारूफ़ शायर जनाब फ़रहत एहसास साहब से...पेश - ए - ख़िदमत है एहसास साहब की एक बेहद ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल उनके चाहने वालों के नाम- फ़रहत एहसास बदन और रूह में झगड़ा पड़ा है। कि हिस्सा इश्क़ में किस का बड़ा है।। हुजूम-ए-गिर्या से हूँ दर-ब-दर मैं, कि घर में सर तलक पानी खड़ा है।। बुलाती है मुझे दीवार-ए-दुनिया, जहाँ हर जिस्म ईंटों सा जड़ा है।। झिंझोड़ा है अभी किस ज़लज़ले ने, ज़मीं से ज़िंदगी सा क्या झड़ा है।। फ़क़त आँखें ही आँखें रह गई हैं, कि सारा शहर मिट्टी में गड़ा है।। तुम्हारा अक्स है या अक्स-ए-दुनिया, तज़ब्ज़ुब सा कुछ आँखों में पड़ा है।। मैं दरिया जाँ बचाता फिर रहा हूँ, कोई साहिल मिरे पीछे पड़ा है।। ज़रा सी शर्म भी कर फ़रहत-'एहसास', बदन तेरा अजब चिकना घड़ा है।। - फ़रहत एहसास हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें: शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक संतोष शाह, सह-संस्थापक रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा संपर्क सूत्र- 8896914889, 8299565686, 7080786182 ई-मेल- hirdukavyashala555@gmail.com वेबसाइट- www.hirdukavyashala.com ब्लॉगर- www.hirdukavya...

Peeyush sharma at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं शाहजहाँपुर के युवा गीतकार पीयूष शर्मा से... प्रस्तुत है पीयूष जी का एक बहुचर्चित गीत... पीयूष शर्मा गीत - तुम अमर मंत्र हो, प्रेम  के ग्रंथ का मैं कदाचित तुम्हें,भूल सकता नहीं । वेदनाएँ  भले  संधि  मुझसे करें चाँद  चाहे मुझे  खोजता ही रहे नाम जपता रहूँगा  तुम्हारा सदा ये जहाँ फिर भले रोकता ही रहे तुम इसे  झूठ  समझो  मगर सत्य है अब हृदय बिन तुम्हारे धड़कता नहीं । प्रेम  के   नीर  से  तुम  भरा  कूप  हो मंदिरों  में   खिली   गुनगुनी   धूप  हो आदि  से अंत  तक  है तुम्हारी चमक तुम अवध की सुबह का मधुर रूप हो दूर  रहकर  हवन मत करो प्यार का पास आओ बदन अब महकता नहीं । नृत्य जब तुम करो, संग नाचे पवन गीत जब तुम पढ़ो, गुनगुनाए गगन कर्म  संसार  के   पूर्ण  मिथ्या  लगें प्रेम जब तुम करो मीत होकर मगन भीग जाए भले  पीर  से तन-बदन किन्तु यौवन तुम्हारा बहकता नहीं । -पीयूष शर्मा हिर्दू काव्यशाल...

Agnivesh shukla at hirdu kavyashala

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आज आपको मिलवाते हैं शाहजहांपुर गौरव स्मृतिशेष अग्निवेश शुक्ल जी से...आक्रोश के कवि और एक जिंदादिल शायर अग्निवेश शुक्ल अपने दौर के साहित्यिक मंचों पर अपनी एक विशेष पहचान रखते थे। उनका फक्कड़ अंदाज़ उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग बनाता था... उनके न रहने के बाद प्रकाशित उनके ग़ज़ल संग्रह  'रात के पिछले पहर' से एक दुनियाबी हकीकत को पेश करती उनकी एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल... स्मृतिशेष अग्निवेश शुक्ल ग़ज़ल : ख़बर फैलेगी थोड़ी सी, ज़रा सा तज़किरा होगा। सिवा इसके बताओ तुम, मैं मर जाऊँ तो क्या होगा। अब इसकी मौत पर खुशियाँ मनाएं, या करें मातम, अज़ीज़ों में मेरे ज़ेरे बहस, यह मुद् दआ होगा। अभी से ढूँढता हूँ मैं उसे, रिश्तों के जंगल में, वो चेहरा कौन सा होगा, जो चेहरा ग़मज़दा होगा। मेरी ऊँचाइयों से जो, परेशाँ ही रहे हर दम, जनाज़ा मेरा, उन बौनों के कंधों पर धरा होगा। सबब कुछ भी हो मरने का, कहेंगे लोग बस इतना, शराबी था, शराबी था, नशे में मर गया होगा। मेरी बीबी भी रोयेगी, मेरे बच्चे भी रोयेंगे, कोई ख़ुदग़र्ज़ शातिर, उनके आँसू पोछता होगा। लबे दम अपनी हसरत है, कि ये मंज़र भी देखेंगे, जहाँ क़दमों...

Lull kanpuri at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं साहित्य नगरी कानपुर के बहु-चर्चित हास्य व्यंग्यकार कवि डा. अजीत सिंह राठौर जी से... काव्य जगत इन्हें लुल्ल कानपुरी के नाम से जानता है... आपके समक्ष है लुल्ल जी की एक कविता... लुल्ल कानपुरी  एक दिन पुरानी किताब में सूखा गुलाब क्या मिल गया पूरा इतिहास आखों के सामने आया ख़्वाब मुस्कराया वो महकुआ तेल का खोपड़ी पर ठोकना पाटनवाला का अफगान स्नो मुहँ पर चुपरना कन्नौज की जन्नते फिरदौस की कली कान में लगाना घंटो शीशे के सामने खड़े होकर बुलबुलिया सोट कर स्कूल का जाना एक स्थान पर स्वयं का बैठना दूसरे स्थान पर उसके लिए धीरे धीरे बस्ता सरकना न दिखाई पड़ने पर मन में आशंकाओं के ज्वार भाटा आते रहते तब तक हम चुप रहते दिल दिमाग दृष्टि का त्रिभुज क्लास रूम के दरवाजे के चौखट के चतुर्भुज में लटका रहता इस बीच मास्टर साहब के प्रश्नों का मेरे पास कोई उत्तर न होता सिर्फ उनकी छड़ी कभी हाथ पर कभी पीठ पर मोटी पतली रेखाओ की प्रमेय निर्मेय बनाती रहती ये मिट्टी की देह उनके लिए सब सहती त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग दो समकोण होता हमसे कभी न हल होता अ...

Ram prakash bekhud at hirdu kavyashala

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आज रू-ब-रू होते हैं हिंदी-उर्दू अदब के एक बा-कमाल शायर ज़नाब राम प्रकाश बेख़ुद साहब से... शायरी में एक नयापन, एक अलग लहज़ा बेख़ुद साहब की शायरी को भी बेहद ख़ास बनाता है... पेश - ए - ख़िदमत है बेख़ुद साहब की एक बेहद ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल... राम प्रकाश बेख़ुद हर तरफ़ जाले थे बिल थे घोंसले छप्पर में थे! जाने कितने घर मेरे उस एक कच्चे घर में थे!! हारने के बाद मैं ये देर तक सोचा किया, सामने दुश्मन थे मेरे या मेरे लश्कर में थे!! दस्त-ए- शहजादी से नाज़ुक कम न थे दस्त-ए-कनीज़, एक में मेंहदी रची थी इक सने गोबर में थे!! चंद सूखी लकड़ियां जलती चिता ख़ामोश राख, जाने कितने ख़ुश्क मंज़र उसकी चश्म-ए-तर में थे!! हम तो दरिया-ए-जुनूं थे हमको कैसे रोकते, होश के पत्थर हमारे पांव की ठोकर में थे!! हश्र में हर आदमी इक बार सोचेगा ज़रूर, मर के हम महशर में हैं या जीते जी महशर में थे!! आजकल तो आदमी में आदमी मिलता नहीं, पहले सुनते हैं कि बेख़ुद देवता पत्थर में थे!! - राम प्रकाश बेख़ुद हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें: शिवम् शर्मा गुमनाम, सह-संस्थापक संतोष शाह, सह-संस्थापक रश्मि द्विवेदी, अध्यक्षा संपर्...

Sumit dilkash at hirdu kavyashala

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आज रू-ब-रू होते हैं कानपुर के सुप्रसिद्ध कवि एवं शायर सुमित द्विवेदी दिलकश से... अपनी बेबाक़ी से दिलकश जी कवियों/शायरों की सफ़ में अलग दिखाई पड़ते हैं... आपके समक्ष प्रस्तुत है दिलकश जी का एक गीत... सुमित द्विवेदी दिलकश हैं कोशिशें जहाँ पर क़ाफिर की जां के हक़ में, नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !! हाथों में ले के पत्थर सड़कों पे नाचते हैं, जिस डाल पर हैं बैठे खुद वो ही काटते हैं, बच्चे नहीं रहें जब खुद अपनी माँ के हक़ में, नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !! नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !! अहसान फ़रामोशी क़ाबिज़ है पूरे दम से, घाटी सिसक रही है बन्दूक गोली बम से, चलने लगें हवाएं भी जब खिज़ां के हक़ में, नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !! नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !! गद्दारी कर रहे हैं अपने वतन से देखो, रिश्ता जुड़ा हुआ है औरों के मन से देखो, जब भाई अपना खोले लब जाहिलां के हक़ में, नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !! नारा कहाँ लगेगा हिन्दोस्तां के हक़ में !! कितना करेंगे हम भी गैरों पे वार बोलो, जब घर में ही छुपे हैं क़ातिल के यार ...

megha yogi at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं गुना, मध्य प्रदेश युवा कवयित्री एवं शायरा मेघा योगी से... पेश – ए – ख़िदमत है मेघा जी की ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल – मेघा योगी ग़ज़ल – क्यों न कुछ नेक काम कर जायें ; इससे पहले कि हम गुजर जायें! अब्र कुछ देर को ठहर जा अब ; लौट के पंछी अपने घर जायें! इनको अक्सर कुरेद लेती हूँ ; जख्म ऐसा न हो कि भर जायें! और अब कौन सा ठिकाना है ; उनके दामन में ही बिखर जायें! अब भी इंसान बसते हो जिसमें ; हम भी ऐसे किसी नगर जायें! खौफ घर में भी और बाहर भी ; बेटियाँ अब भला किधर जायें! आज सच को बयान कर देंगे ; इस से पहले कि हम भी डर जायें! उनको सजदे भला करे कैसे ; जो कि नजरों से ही उतर जायें! जिनकी उजली कमीज़ है मेघा ; काश भीतर से भी निखर जायें!   -  मेघा योगी हिर्दू काव्यशाला से जुड़ें... संतोष शाह   (सह-संस्थापक) शिवम् शर्मा "गुमनाम"   (सह-संस्थापक) रश्मि द्विवेदी   (अध्यक्षा) संपर्क सूत्र -   8896914889 , 8299565686 , 9889697675      

jayshankar prasad at hirdu kavyashala

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आज मिलते हैं छायावाद युग के स्तंभ कवि जय शंकर प्रसाद जी से...प्रसाद जी सुप्रसिद्ध कवि होने के साथ साथ कवि, नाटककार, कहानीकार एवं उपान्यासकार भी थे...उन्हें छायावाद युग का संस्थापक कवि भी माना जाता है... प्रसाद जी की कुछ प्रमुख काव्य कृतियाँ लहर, झरना, आंसू आदि हैं...आपके समक्ष है जय शंकर प्रसाद जी की एक बहुचर्चित कविता... जय शंकर प्रसाद कविता – हिमालय के आँगन में उसे , प्रथम किरणों का दे उपहार ! उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार !! जगे हम , लगे जगाने विश्व , लोक में फैला फिर आलोक ! व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट , अखिल संसृति हो उठी अशोक !! विमल वाणी ने वीणा ली , कमल कोमल कर में सप्रीत ! सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे , छिड़ा तब मधुर साम-संगीत !! बचाकर बीज रूप से सृष्टि , नाव पर झेल प्रलय का शीत ! अरुण-केतन लेकर निज हाथ , वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत !! सुना है वह दधीचि का त्याग , हमारी जातीयता विकास ! पुरंदर ने पवि से है लिखा , अस्थि-युग का मेरा इतिहास !! सिंधु-सा विस्तृत और अथाह , एक निर्वासित का उत्साह ! दे रही अभी दिखाई भग्न , मग्न रत्नाकर में वह...